शैक्षिक उन्नयन : एक कहावत है कि भूखे भजन न होहि गोपाला, भूखे पेट भगवान का भजन नहीं होता, पेट भरा रहे तो मनुष्य को बाकी चीजें देती हैं दिखाई शैक्षिक उन्नयन में ‘मिड-डे-मील’ काफी सहायक
मानव जीवन की कुछ मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं। इसमें भोजन, आवास और शिक्षा प्रमुख हैं। बच्चों के जन्म लेते ही सबसे पहले उन्हें भोजन की आवश्यकता पड़ती है। गरीब परिवार के लोग परिवार के भरण पोषण के लिए बच्चों को काम पर भेज देते हैं जहां उनका शोषण होता है और वह शिक्षा से भी वंचित रह जाते हैं। वर्तन समय में यह स्पष्ट हो चुका है कि बिना शिक्षा के किसी सज, जाति या फिर देश का विकास संभव नहीं हैं। बच्चा जब बचपन से अर्थोपार्जन में लग जाएगा तो उसका शारीरिक, नसिक विकास अवरुद्ध हो जाएगा। अत: किसी भी राष्ट्र को विकसित होने के लिए बच्चों के विकास पर ध्यान देना जरूरी है।
प्राइमरी स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था कुछ हद तक सही है। कम से कम बच्चा उसी की लालच से विद्यालय जाएगा जहां उसे कम से कम एक समय पर्याप्त भोजन और उसी के साथ शिक्षा प्राप्त होगी। बच्चा बाल श्रमिक बनने से भी बच जाएगा। गरीब आदमी प्राइवेट स्कूलों की महंगी फीस नहीं भर सकता तो कम से कम प्राइमरी स्कूलों में जाकर सान्य शिक्षा तो प्राप्त करेगा। उन्हें पहनने के लिए ड्रेस, किताबें आदि उपलब्ध कराना मेरे समझ से उचित है। कम से कम गरीब बच्चे विद्यालय में इसी लालच में आएंगे। अनुशासन, शिक्षा, रहन-सहन, बोल-चाल के तरीके तो सीखेंगे अन्यथा इनका अधिकांश समय गंदे परिवेश में रहते, गाली गलौज करते, श्रम करते हुए बीत जाएगा और बाद में चलकर ऐसे बच्चे देश के लिए भार स्वरुप हो जाएंगे। कुछ ही समय में गुणवत्ताविहीन नागरिकों का देश में एक विशाल समूह तैयार हो जाएगा। हां, इस व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने व इसे उपयोगी बनाने के लिए इसमें जितने लोग शामिल हैं, उन्हें ईमानदारी पूर्वक कर्तव्य का पालन करना होगा, तभी इसका लाभ समुचित रूप से मिल पाएगा। रही बात शिक्षा के स्तर की तो मेरी समझ से बिल्कुल ना से तो कुछ अच्छा ही भला है।
एक कहावत है कि भूखे भजन न होहि गोपाला, भूखे पेट भगवान का भजन नहीं होता। पेट भरा रहे तो मनुष्य को बाकी चीजें दिखाई देती हैं। ऐसे में मिड-डे-मील की व्यवस्था से शिक्षा का स्तर प्रभावित हुए बगैर आगे बढ़ाने में सहायक होगा।
शिवांगी यादव 1कक्षा-12 सेंट जेवियर्स हाईस्कूल एलवल।
✔ सार्थक साबित हो रही विद्यालयों में यह व्यवस्था
✔ बेसहारा बच्चों को मिलती है निशुल्क किताबें भी
सामाजिक सरोकारों, मुद्दों को लेकर बेटियों की सोच और सपनों को दैनिक जागरण इबारत की शक्ल देना चाहता है। इसके लिए शुरू किया गया है एक अभियान बेटियों की डायरी’। इसमें कक्षा 12 वीं से लेकर आगे तक की छात्रएं शामिल हो सकती हैं। लिखने-पढ़ने की आदत को मजबूती प्रदान करने के साथ बौद्धिक विकास के इस अभियान में बेटियां अपने शहर में सुशिक्षित सज, स्वस्थ सज, नारी सशक्तीकरण, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, गरीबी उन्मूलन, जनसंख्या नियोजन, सुरक्षा, लैंगिंक सनता, साजिक असामनता और अन्याय जैसे मुद्दों पर 600 शब्दों तक लिख सकती हैं।