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लखनऊ : मदरसों में गुणावत्तापरक शिक्षा देने की चल रही योजना

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लखनऊ : मदरसों में गुणावत्तापरक शिक्षा देने की चल रही योजना

लखनऊ। मदरसा शिक्षा का स्वरूप परम्परागत है। यहां पर इस्लाम धर्म से सम्बन्धित शिक्षा के अलावा दी जाने वाली शिक्षा काफी पुरातन है। इसको आधुनिक स्वरूप देने और गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करने के लिए केन्द्र सरकार योजना चल रही है। यह जानकारी डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में ‘ऐतिहासिक संवेदनाशीलता और सामाजिक अनुसंधान विषय पर चल रही रिसर्च वर्कशाप के आखिरी दिन भोपाल के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के शोध छात्र जावेद अनीस ने दी। उन्होंने कहा कि मदरसों में धार्मिक विषयों के अतिरिक्त दी जाने वाली शिक्षा इतनी पुरातन है कि वर्तमान में इसका कोई विशेष महत्व नहीं है। इन परिस्थितियों में भारत सरकार और समाज के एक हिस्से का यह माना है कि इस शिक्षा को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया जाए। इस उद्देश्य के मद्देनजर भारत सरकार योजनाएं चला रही है। जिसमें मदरसों में गुणावत्तापरक शिक्षा प्रदान करने की योजना (एसपीक्यूईएम) प्रमुख है। इसका मुख्य उद्देश्य मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को आधुनिक विषयों से जोड़ना है। श्री अनीस ने अपने शोध में भारत में मुस्लिम शिक्षा की स्थिति, मदरसा आधुनिकीकरण की आवश्यकता,इसके प्रभाव और सीमाओं का विश्लेषण किया गया है। इसके पूर्व बुधवार को कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो. संजय सिंह ने कहा कि ऐसी कार्यशाला शोध को बढ़ावा देने में सहायक होती हैं। शोध की नई तकनीकी की जानकारी भी होती है। बुधवार को प्रथम सत्र में विकास एवं शासन विषय पर केंद्रित कई शोध पत्र पढ़े गए। इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय की खुशबू जैन ने दिल्ली के फुटपाथ पर जीवनयापन करने वालों के जीवन एवं उनके निवास निर्माण के अभ्यास पर केन्द्रित अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। शिव नाडार विश्वविद्यालय की निष्पृहा ठाकुर ने जहाँ 1990 के विध्वंश के बाद के सूरत पर एक केस स्टडी को प्रस्तुत किया, तो वहीं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की निवेदिता बसु ने दिल्ली की नेबरहुड एसोसिएशन पर अपना शोध पत्र पढ़ा। समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. एस के चौधरी ने एथनोग्राफी और सोशल एंथ्रोपोलजी के अध्ययन में एवं समाजशास्त्रीय अनुसंधानों में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के प्रयोग की वकालत की। विशिष्ट अतिथि प्रो. राजेश मिश्रा ने समाजशास्त्र के लखनऊ संप्रदाय की गौरवशाली परंपरा का स्मरण करते हुए प्रख्यात समाजशात्रियों डॉ. राधाकमल मुखर्जी, डॉ.डी पी मुखर्जी और डॉ. ए के सरन के योगदान की चर्चा की।

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