लखनऊ : झाड़ू तो लगती नहीं स्वच्छ विद्यालय की दावेदारी, संसाधनों का ठिकाना नहीं, पुरस्कार के लिए कर रहे खानापूरी, तकनीक मामाले में कमजोर शिक्षक काट रहे साइबर कैफे के चक्कर
शिखा श्रीवास्तव- राज्य मुख्यालय । न तो संसाधन हैं और न ही आधारभूत सुविधाएं... स्कूलों में रोज झाड़ू तक नहीं लगती। शौचालय साफ करने के लिए सफाईकर्मी नहीं। इन सब के बावजूद स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार के लिए पंजीकरण करने का दबाव अध्यापकों पर है। केन्द्र सरकार की इस योजना के लिए ऑनलाइन पंजीकरण किया जाना है। ऐसे में प्रधानाध्यापक परेशान हैं कि वे कैसे पंजीकरण करवाएं। कई जिलों में बेसिक शिक्षा अधिकारी व खण्ड शिक्षा अधिकारियों ने फरमान जारी कर दिया है कि यदि पंजीकरण नहीं करवाया तो वेतन में कटौती तक हो सकती है। स्वच्छता कार्यक्रम भाजपा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में है। पहले इसकी अंतिम तारीख 31 अक्तूबर तक थी लेकिन अब इसे बढ़ाकर 15 नवम्बर तक कर दिया है। वे शिक्षक जो तकनीक के मामले में आगे हैं उनके लिए यह पंजीकरण समस्या नहीं है लेकिन तकनीक के मामाले में कमजोर शिक्षक साइबर कैफे के चक्कर काट रहे हैं। वहीं कई प्रधानाध्यापक देर के लिए सुविधाएं न होने का हवाला दे रहे हैं। 2016-17 में 21 जिलों के 52 स्कूलों को राज्य स्तरीय स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। इन स्कूलों का भौतिक सत्यापन उच्च स्तरीय कमेटी से कराया गया। हालांकि इनमें से केवल 20 स्कूल ही पुरस्कृत हुए।
इनमें से 19 प्राइमरी स्तर के और एक माध्यमिक स्तर का स्कूल था। वहीं आगरा, औरैया, बांदा, संभल, देवरिया, फैजाबाद, गाजीपुर, जालौन, जौनपुर, अमरोहा, महाराजगंज, मैनपुरी, मथुरा, प्रतापगढ़, रायबरेली, शामली, संतकबीरनगर, श्रावस्ती व सोनभद्र से एक भी स्कूल का नामांकन नहीं किया गया था। इन जिलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों से इस संबंध में स्पष्टीकरण भी मांगा गया था लिहाजा इस बार अधिकारी चौकस हैं और इसके लिए बराबर निर्देश जारी कर रहे हैं।