सौ साल पुरानी है बुनियादी विद्यालय की कहानी, महात्मा गांधी ने की थी प्रथम बुनियादी विद्यालय की स्थापना
पंडित राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर चंपारण आते वक्त महात्मा गांधी ने सोचा न था कि उन्हें लंबा समय यहां व्यतीत करना होगा। यहीं से सत्याग्रह आंदोलन का आरंभ होगा। जब चंपारण में बापू ने लोगों की समस्याओं को करीब से देखा तो उनके मन में आया कि आजादी की लड़ाई के पहले चंपारण के गांवों में शिक्षा की लौ जलानी होगी। इसी विचार के साथ 13 नवंबर, 1917 को जिले के ढाका प्रखंड के बड़हरवा लखनसेन में प्रथम बुनियादी विद्यालय की स्थापना की। आज इस बुनियादी विद्यालय की कहानी 100 साल पुरानी हो गई है। यहां आज भी लोगों के बीच बापू जिंदा हैं। इस परिसर में बापू की प्रतिमा है और उनसे जुड़ी चीजों को एक कमरे में संरक्षित किया गया है।1 देश और दुनिया में चंपारण को जो प्रसिद्धि मिली है,उसमें सत्याग्रह आंदोलन मील का पत्थर है। इनमें शामिल बड़हरवा लखनसेन को आज भी बापू के सपनों वाली आजादी का इंतजार है। यहां के लोग पूरी तरह स्वच्छता के साये में नहीं है। शिक्षा के स्तर में गुणात्मक सुधार होना अभी बाकी है। किसानी कराह रही है। आलम यह है कि गरीबी और अशिक्षा का आज भी इस इलाके में डेरा है। 1शिक्षा के साथ स्वरोजगार को भी किया प्रेरित : बापू जब यहां आए थे तो उन्हें यहां के किसान बक्शी शिवगुलाम लाल ने 4.5 एकड़ जमीन दान में दी। शिक्षकों के भोजन व पानी का इंतजाम कराया। बापू ने यहां मुंबई के इंजीनियर बबन गोखले, अवंतिका बाई गोखले, साबरमती आश्रम के छोटेलाल तथा सुरेंद्र जी के अलावा अपने पुत्र देव दास गांधी को शिक्षक के रूप में रखा। समय के साथ यहां कस्तूरबा गांधी भी आईं। अंग्रेजी जुल्म से त्रस्त लोगों के बीच शिक्षा का बीज बोया गया और स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जाने लगा। इसके लिए चरखे का इंतजाम किया गया। देश आजाद हो गया। लेकिन, गांव के विकास की कहानी 100 साल बाद भी पूरी नहीं हो पाई है। 1कागज पर विकास, धरातल पर जरूरत: 13 नवंबर, 1917 को स्थापित इस ऐतिहासिक विद्यालय की स्थापना का उस समय उद्देश्य था अक्षर ज्ञान और लोगों के बीच चेतना का संचार करना। बदलते वक्त के साथ यह विद्यालय कागज पर विकसित हुआ। स्थापना के 100वें साल में विद्यालय के विकास के लिए सरकार ने 30 लाख रुपये आवंटित किए हैं, लेकिन शैक्षणिक विकास की दिशा में की गई कोशिश कमजोर है। गांधी आदर्श राजकीय मध्य विद्यालय अब उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय हो गया है। आठवीं तक के 757 विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए मात्र छह शिक्षक हैं। इनमें दो ही नियमित हैं। नौवीं व 10वीं को जोड़ लें तो 341 विद्यार्थी और जुड़ जाएंगे। ऐसे में सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि यहां शिक्षा का क्या हाल है। विद्यालय के प्रधान अजय कुमार बताते हैं कि विद्यालय के विकास का काम चल रहा है। शिक्षकों की संख्या बढ़ाने की दिशा में विभाग के स्तर पर निर्णय लिया जाना है।अन्य विशेष खबरें पढ़ें..
जैसे-जैसे मुङो अनुभव प्राप्त होता गया, वैसे-वैसे मैंने देखा कि चंपारण में ठीक से काम करना हो तो गांवों में शिक्षा का प्रवेश होना चाहिए। लोगों का अज्ञान दयनीय था। गांवों के बच्चे मारे-मारे फिरते थे अथवा माता-पिता दो या तीन पैसे की आमदनी के लिए उनसे सारे दिन नील के खेतों में मजदूरी करवाते थे।