आगरा : फर्जी डिग्री मामले में हाईकोर्ट जाने की तैयारी में शिक्षक
जागरण संवाददाता, आगरा: परिषदीय स्कूलों में फर्जी डिग्री वाले शिक्षकों की खोज बेसिक शिक्षा विभाग के गले की हड्डी बनने वाली है। निलंबन, मुकदमा दर्ज कराने और वेतन रोकने की चेतावनी के साथ कथित फर्जी डिग्री धारक शिक्षकों को दिए गए नोटिस के खिलाफ हाईकोर्ट जाने की तैयारी शुरू हो गई है। शिक्षकों का कहना है कि बीएसए ने बिना विभागीय जांच कराए ही सिर्फ एसआइटी की सूचना पर नोटिस दे दिया है, जबकि अभी तक विश्वविद्यालय ने उक्त डिग्रियों को निरस्त नहीं किया है और न ही हाईकोर्ट ने इस संबंध में कोई निर्देश दिए हैं।
एसआइटी ने डॉ.बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय की कथित फर्जी डिग्रियों की जांच के बाद इसकी रिपोर्ट और एक सीडी शासन को सौंपी। जिसमें बताया गया कि करीब चार हजार लोगों ने फर्जी डिग्रियों से परिषदीय स्कूलों में शिक्षक पद की नौकरी प्राप्त कर ली है। लिहाजा सीडी में दर्ज रिकॉर्ड से शिक्षकों के प्रमाण पत्रों का मिलान कर कार्रवाई की जाए। इसके बाद शासन स्तर से एसआइटी द्वारा सौंपी गई सीडी को बीएसए को सौंप दिया गया। बीएसए ने मिलान कर 241 शिक्षक चिह्नित किए, उनकी डिग्रियों को फर्जी और संदिग्ध माना। इसी आधार पर उक्त शिक्षकों को नोटिस तामील करा दिए गए। जिसमें निलंबन, एफआइआर, वेतन रोकने की चेतावनी लिखी है। शिक्षक इस कार्रवाई के खिलाफ हाईकोर्ट में एक-दो दिन में याचिका दायर कर सकते हैं। करीब दो दर्जन शिक्षकों ने शहर के वकील हेमंत भारद्वाज से संपर्क साधा है। वकील हेमंत भारद्वाज ने बताया कि बीएसए द्वारा नियम विरुद्ध नोटिस जारी किए गए हैं। उन्हें एसआइटी की जांच के बजाए विभागीय जांच करानी चाहिए, उसकी रिपोर्ट के आधार पर नोटिस और अन्य कार्रवाई करनी चाहिए। क्योंकि अभी विश्वविद्यालय ने उक्त डिग्रियों को फर्जी मानते हुए निरस्त नहीं किया है।
इधर, बीएसए अर्चना गुप्ता ने बताया कि एसआइटी की सीडी में दर्ज रिकॉर्ड से शिक्षकों की डिग्रियों का मिलान किया है। इस आधार पर 241 शिक्षकों की डिग्रियों को फर्जी पाया गया है और नोटिस जारी किए गए। हालांकि शिक्षक हाईकोर्ट जा सकते हैं।
विभाग की भूमिका सवालों के घेरे में
बीएसए द्वारा नोटिस जारी कर कार्रवाई की चेतावनी देने वाले नोटिसों से विभाग की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है। क्योंकि 10 साल पहले जब उक्त शिक्षकों की नियुक्ति हुई, उस समय भी इनके शैक्षिक प्रमाण देखे गए, फिर मूल प्रमाण लिए गए और उन्हें छह माह तक रखा। इनकी विभागीय गोपनीय जांच कराई गई। लेकिन तब विभाग ने इनके प्रमाण पत्रों को सही माना था।