देवरिया : बेटियों के लिए सरकारी स्कूल, बेटों को कान्वेंट, सोच का अंतर
सरकारी विद्यालयों में बेटों से अधिक पढ़ रहीं बेटियां, लिंगानुपात में पिछड़ने के बावजूद दाखिले के मामले में आगे
कला में आगे, विज्ञान व कामर्स में पीछे हैं लड़कियां : आंकड़ों से पता चलता है कि इंटरमीडिएट में कला वर्ग की पढ़ाई में लड़कियां लड़कों से आगे हैं जबकि विज्ञान और कामर्स वर्ग में लड़के लड़कियों से आगे हैं। कला वर्ग में नामांकित लड़कियों की संख्या 67230 है जबकि विज्ञान वर्ग में 54740 और कामर्स में 6140 है। इसके उलट विज्ञान वर्ग में नामांकन लेने वालों की संख्या 72240 है।1कक्षा/वर्ग छात्र संख्या बालक बालिका1इंटरमीडिएट >>1,33,120 62140 >>70980 1हाईस्कूल >>1,59,968 70293 >>889681जूनियर हाई स्कूल >>52,577 >> 23117 >>29460 1प्राथमिक वर्ग >>1,78,504 79900 >>98604 1योग >> 5,24,169 >> 2,36,080 >>288012
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विवेकानंद मिश्र देवरिया 1 जनपद में बेटियां भले ही लिंगानुपात में बेटों से कम है, लेकिन सरकारी स्कूलों में दाखिले के मामले में वह बेटों पर भारी पड़ रही हैं। इस वर्ष नर्सरी से बारहवीं तक लगभग सवा पांच लाख बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, इनमें से लड़कियों की संख्या करीब तीन लाख है। हालांकि अभिभावकों ने बेटों को पढ़ाने के लिए सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी विद्यालयों को वरीयता दी है जबकि बेटियों को पढ़ाने के लिए सरकारी स्कूल अभिभावकों की पहली पसंद हैं। स्कूलों में बेटियों की संख्या और शिक्षा के प्रति बढ़ते रुझान का भी पता चलता है।1 शिक्षा विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017-18 में माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में 2,92,381 छात्रों ने नामांकन कराया, जिसमें से लड़कियों की संख्या 1,59,948 है, जबकि लड़कों की संख्या 1,32,233 है। 1 यानी लड़कियों की संख्या लड़कों से 27515 हजार अधिक है। प्राथमिक व जूनियर स्कूलों में 2,31,081 बच्चे शिक्षा ले रहे हैं, जिसमें से लड़कियों की संख्या 1,28,064 है, जबकि लड़कों की संख्या 1,03017 है। यानी लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या 25047 अधिक है। आंकड़ों की मानें तो सामान्य, पिछड़े व अनुसूचित जाति के कुछ छात्र संख्या में भी लड़कियां आगे हैं। यह हाल तक है जब जनपद में 1000 लड़कों के सापेक्ष लड़कियों की संख्या 921 है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि लोग बेटों को निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं जबकि बेटियों के लिए सरकारी स्कूलों को प्राथमिकता दी जा रही है। यह लिंग भेदभाव का भी उदाहरण हैं। शिक्षा के क्षेत्र खास कर विज्ञान शिक्षा के प्रचार-प्रसार में लगे हरदयाल सिंह होरा ने कहा कि आज भी अभिभावकों की मानसिकता यही है कि बेटों को अच्छी शिक्षा देनी है। इस पर वे अधिक खर्च भी करते हैं। 1उधर बेटियों को खानापूरी के लिए सरकारी स्कूलों में भेज दिया जाता है। बेटियों को बराबरी का हक अब भी नहीं मिल पा रहा है, हालांकि हाल के दिनों में बेटियों के प्रति अभिभावकों के नजरिए में बदलाव दिख रहा है।1प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते छात्र ’ जागरण’ 2,36,080 लड़कों व 288012 लड़कियों ने कराया है नामांकन1’ बेटियों को अच्छी शिक्षा देने की मानसिकता कायम