इलाहाबाद : यूपी बोर्ड 750 नए कालेज बने परीक्षा केंद्र, सूची से 351 निजी स्कूल हटाए गए, जिला विद्यालय निरीक्षकों ने पूरी केंद्र स्थापना नीति का उड़ाया मखौल
राज्य ब्यूरो इलाहाबाद: यूपी बोर्ड के परीक्षा केंद्र निर्धारण में भले ही कम कालेजों में इम्तिहान कराने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है लेकिन, स्याह पक्ष यह है कि आपत्तियां निपटाने के नाम पर जिला विद्यालय निरीक्षकों ने पूरी नीति को पलीता लगा दिया है। अफसरों ने 351 निजी कालेजों को बेदखल करके दोगुनी संख्या में 750 दूसरे वित्तविहीन कालेजों को केंद्र बना दिया है। इसी तरह से राजकीय और अशासकीय कालेजों में भी उलटफेर किया है। आखिरकार पहले तय हुए राजकीय व अशासकीय कालेज काटे क्यों गए? इस पर सब मौन हैं। माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड की हाईस्कूल व इंटरमीडिएट परीक्षा 2018 के केंद्रों की अंतिम सूची जारी होते ही हाहाकार मचा है। केंद्रों को लेकर नाराजगी ठीक वैसे ही है जैसे अनंतिम सूची जारी होने पर हुई थी। उस समय डिबार, दागी व संसाधन विहीन कालेजों के केंद्र बनने पर गुस्सा था, जबकि अंतिम सूची में जिला विद्यालय निरीक्षकों ने अपनों को खुश करने के लिए बड़ा उलटफेर किया है। खास बात यह है कि इन बदलावों में उन जिलों के जिलाधिकारी की मुहर भी लगी है। ज्ञात हो कि इस बार यूपी बोर्ड मुख्यालय पर कंप्यूटर के जरिये केंद्रों का निर्धारण हुआ है। बोर्ड की ओर से अनंतिम सूची में 4243 निजी कालेजों को केंद्र बनाया गया था, वहीं अंतिम सूची में यह संख्या बढ़कर 4640 हो गई है। इस लिहाज से महज 397 कालेज बढ़े हैं लेकिन, बोर्ड की रिपोर्ट चौंकाने वाली है इसमें कहा गया है कि अनंतिम सूची से 351 निजी कालेजों को हटाकर 750 दूसरे कालेज केंद्र बनाया गया है। इसी तरह से अनंतिम सूची में 3437 अशासकीय कालेजों को केंद्र बनाया गया था, वहीं अंतिम सूची में इन कालेजों की संख्या बढ़कर 3477 हो गई है। यह आंकड़ा देखकर लगता है मानों सिर्फ 40 कालेजों में बदलाव हुआ है लेकिन, बोर्ड की रिपोर्ट में अनंतिम सूची से 149 कालेजों को हटाकर 187 दूसरे अशासकीय कालेजों को जोड़ा गया है। ऐसे ही अनंतिम सूची में 377 राजकीय कालेज शामिल थे, अंतिम सूची में यह संख्या बढ़कर 423 हो गई है, जो 46 केंद्रों में बदलाव का संकेत देती है। वहीं, बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार अनंतिम सूची के 55 राजकीय कालेजों को हटाकर 101 दूसरे राजकीय कालेज केंद्र बनाए गए हैं।यहां बड़ा सवाल यह है कि जब शासन की ओर से जारी परीक्षा नीति में राजकीय व अशासकीय कालेजों को केंद्र बनाने में प्राथमिकता देने के निर्देश थे, तब राजकीय व अशासकीय कालेजों में इतना बड़ा उलटफेर क्यों किया गया? क्या अनंतिम सूची में तय कालेज केंद्र बनने के लायक नहीं थे? या फिर अपनों को खुश करने के लिए बदलाव हुआ है। यह भी हैरान करने वाला सवाल है कि 2017 की परीक्षा में 513 राजकीय कालेज केंद्र बने थे, इस बार 423 को ही क्यों मौका मिला। वहीं अशासकीय कालेजों में 2017 में 3692 कालेज केंद्र बने थे, इस बार सिर्फ 3477 कालेजों को मौका मिला है। राजकीय के 90 व अशासकीय के 215 कालेज आखिर किस वजह से केंद्र सूची से बाहर हो गए हैं, जो पिछली बार परीक्षा केंद्र बने थे। यदि वहां मानक पूरे नहीं हैं तो पिछले वर्ष की परीक्षा कैसे हो गई?