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सिद्धार्थ नगर : दया की भीख मांग रही शिक्षा

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दया की भीख मांग रही शिक्षा


सिद्धार्थनगर : पूरे विश्व को शांति, अ¨हसा व करूणा का संदेश भले ही इस धरती से गई, पर शिक्षा के मामले में अपेक्षित उड़ान नहीं भर सकी है। कुछ कोशिशें तो हुई, मगर परवान न चढ़ने से सार्थकता सिद्ध नहीं हो सकी। जनपद बनने के 29 वर्ष बाद भी प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के लिए यहां जनमानस व्यवस्था से दया की भीख मांग रही है। स्कूलों की संख्या में इजाफा तो हुआ, पर शिक्षकों व अन्य संसाधनों का टोटा होने से स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

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प्राथमिक शिक्षा

बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों का घोर अभाव है। जनपद के 1924 प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक के 419 तो सहायक अध्यापक के 2733 पद खाली चल रहे हैं। ऐसे में इन विद्यालयों में पढ़ने के लिए लालायित बच्चों को कैसे शिक्षा मुहैय्या होती होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। अधिकांश प्राथमिक स्कूल शिक्षा मित्रों के भरोसे तो कई एकल शिक्षक के सहारे संचालित हो रहे हैं। बच्चों को ड्रेस, पाठ्य-पुस्तक, भोजन के बाद अब जूता-मोजा भी उपलब्ध कराया जा रहा है। तमाम सुविधाओं के बावजूद स्वीकृति के सापेक्ष शिक्षकों की तैनाती न होने से सरकार की मंशा कोशिशों के बाद भी पूरी नहीं हो पा रही है। जहां तक पूर्व माध्यमिक विद्यालयों की बात करें तो इसकी स्थिति और भी दयनीय हैं। कुल 740 विद्यालयों में प्रधानाध्यापक के सापेक्ष महज 116 ही तैनात हैं। लिहाजा 624 पद रिक्त पड़े हुए हैं। सहायक अध्यापकों के स्वीकृत 1759 के सापेक्ष 1190 ही कार्यरत हैं। यहां भी 569 पद खाली चल रहे हैं। इन विद्यालयों में अनुदेशकों से काम चलाया जा रहा है। बेसिक शिक्षा अधिकारी मनिराम ¨सह का कहना है कि उपलब्ध साधन व संसाधन से ही बेहतर परिणाम देने के लिए प्रयासरत हैं।

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माध्यमिक शिक्षा

माध्यमिक शिक्षा द्वारा संचालित स्कूलों की भी दशा बद से बदतर है। अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भी प्रधानाचार्य, प्रवक्ता व सहायक अध्यापकों की घोर कमी से कराह रहा है। जिले के 48 विद्यालयों में प्रधानाचार्य पद के 16, प्रधानाध्यापक के 25, प्रवक्ता के 48 व सहायक अध्यापक 568 पद रिक्त चल रहे हैं। बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने की गरज से स्थापित तीन राजकीय कन्या इंटर कालेजों में एक पर भी प्रधानाचार्य की तैनाती नहीं है। कार्यवाहक के भरोसे चलाया जा रहा है। प्रवक्ता के 12 पद रिक्त चल रहे हैं। इनमें कई अहम विषयों की प्रवक्ता न होने से बालिकाएं उस विषय की पढ़ाई से वंचित हो रही या वैकल्पिक व्यवस्था से पढ़ने को मजबूर हैं। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान अंतर्गित जिले में पूर्व माध्यमिक विद्यालयों से उच्चीकृत हुए राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की संख्या 16 हैं। यहां की हालत तो अत्यंत ही खराब है। सभी में प्रधानाचार्यों का पद रिक्त चल रहा है। सहायक अध्यापक के 112 के सापेक्ष सिर्फ सात की तैनाती हैं। शेष 105 पद खाली पड़े हैं। मल्टीसेक्टोरल डेवलपमेंट योजना के तहत जिले में अब तक राजकीय इंटर कालेज का भवन तैयार होकर कार्यदायी संस्था द्वारा माध्यमिक शिक्षा विभाग को हैंडओवर कर चुका है। पदों का सृजन हुए दो वर्ष बीत चुके हैं, पर किसी भी पद पर तैनाती नहीं हो सकी है। जिला मुख्यालय के भवन पर बैलेट बाक्स रखने समेत केंद्रीय विद्यालय का संचालन कराया जा रहा है। जिला विद्यालय निरीक्षक डा. राज बहादुर मौर्य ने कहा कि रिक्त पदों के लिए अधियाचन आयोग समेत शासन स्तर पर समय-समय पर जाता है। तैनाती तो उच्च स्तर से ही संभव है।

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उच्च शिक्षा

उच्च शिक्षा के नाम पर दो वर्ष पूर्व सिर्फ महाविद्यालय ही हुआ करते थे। 30 अक्टूबर 2013 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश कुमार यादव ने जिला मुख्यालय से 22 किमी. दूर कपिलवस्तु में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया। शिलान्यास के पश्चात प्रशासनिक भवन, कुलपति आवास, कला संकाय बना। 15 अक्टूबर 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसका लोकार्पण भी किया। 17 जून 2015 को सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के लिए अधिसूचना जारी हुई और ढाई वर्षों में उसने न सिर्फ संख्या बढ़ाई, बल्कि महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में एक बड़ा संदेश भी दिया है। गत 14 दिसंबर को कुलाधिपति व राज्यपाल रामनाईक ने यहां दीनदयाल उपाध्याय शिक्षक आवास संकुल का लोकार्पण किया। कुलाधिपति ने बताया कि सूबे में कुल 29 विश्वविद्यालय राज्य के अधीन हैं। इसमें से चार नवनिर्मित हैं। नए विश्वविद्यालयों में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय प्रथम व 29 में यह 18वें स्थान पर है, जहां दीक्षा समारोह आयोजित है। विश्वविद्यालय के पास 51 फीसद छात्र व 49 फीसद छात्राएं हैं। वर्ष 2017 में कुल 25 विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक मिला है। इसमें गौरवपूर्ण है कि इसमें 17 छात्राएं शामिल हैं। उच्च शिक्षा के नाम पर भले ही विवि की स्थापना हुई, पर वित्त पोषित महाविद्यालयों में प्रवक्तओं व प्रोफेसरों की घोर कमी है। अहम विषयों की पढ़ाई ठप है।

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