लखनऊ : उत्तरमाला विवाद में किताबें पेश करने की अनुमति प्रदेश सरकार को 24 जनवरी तक हलफनामा देने को कहा, प्रमुख सचिव फूड सेफ्टी अवमानना में तलब यूपी-टीईटी-2017
विधि संवाददाता, लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी-टीईटी 2017 की उत्तरमाला के विवाद में राज्य सरकार को संबंधित किताबें और उनके भागों को पेश करने की अनुमति दी है। सरकार का कहना है कि इन्हीं किताबों के आधार पर विशेषज्ञों ने अपनी राय दी है। कोर्ट ने सरकार को 24 जनवरी तक इस संबंध में हलफनामा पेश करने को कहा है।1यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकल सदस्यीय पीठ ने मोहम्मद रिजवान व 103 अन्य अभ्यर्थियों की याचिका पर पारित किया। शुक्रवार को इसकी सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उन्हें उन किताबों के विवरण प्राप्त हुए हैं, जिन्हें दृष्टिगत रखते हुए विशेषज्ञों ने अपनी राय दी थी। सरकार की ओर से किताबों के संबंधित भाग को पेश करने के लिए 24 जनवरी तक का समय दिए जाने की मांग की गई। कोर्ट ने सरकार का अनुरोध स्वीकार करते हुए पूरक शपथ पत्र के साथ सभी सामग्री दाखिल करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने याची पक्ष को भी जवाब दाखिल करने के लिए 29 जनवरी तक का समय दिया व मामले की अंतिम सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तारीख तय कर दी। इस दिन इसी विषय से संबंधित सात अन्य याचिकाओं के साथ वर्तमान याचिका की सुनवाई होगी। याचिका में यूपी-टीईटी परीक्षा के उत्तरमाला को चुनौती दी गई है। सरकार ने इस मामले में कुछ विशेषज्ञों की रिपोर्ट पेश करते हुए, उत्तरमाला में दिए उत्तरों के सही होने की दलील दी है।विधि संवाददाता, लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी-टीईटी 2017 की उत्तरमाला के विवाद में राज्य सरकार को संबंधित किताबें और उनके भागों को पेश करने की अनुमति दी है। सरकार का कहना है कि इन्हीं किताबों के आधार पर विशेषज्ञों ने अपनी राय दी है। कोर्ट ने सरकार को 24 जनवरी तक इस संबंध में हलफनामा पेश करने को कहा है।1यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकल सदस्यीय पीठ ने मोहम्मद रिजवान व 103 अन्य अभ्यर्थियों की याचिका पर पारित किया। शुक्रवार को इसकी सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उन्हें उन किताबों के विवरण प्राप्त हुए हैं, जिन्हें दृष्टिगत रखते हुए विशेषज्ञों ने अपनी राय दी थी। सरकार की ओर से किताबों के संबंधित भाग को पेश करने के लिए 24 जनवरी तक का समय दिए जाने की मांग की गई। कोर्ट ने सरकार का अनुरोध स्वीकार करते हुए पूरक शपथ पत्र के साथ सभी सामग्री दाखिल करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने याची पक्ष को भी जवाब दाखिल करने के लिए 29 जनवरी तक का समय दिया व मामले की अंतिम सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तारीख तय कर दी। इस दिन इसी विषय से संबंधित सात अन्य याचिकाओं के साथ वर्तमान याचिका की सुनवाई होगी। याचिका में यूपी-टीईटी परीक्षा के उत्तरमाला को चुनौती दी गई है। सरकार ने इस मामले में कुछ विशेषज्ञों की रिपोर्ट पेश करते हुए, उत्तरमाला में दिए उत्तरों के सही होने की दलील दी है।विधि संवाददाता, लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ ख्ांडपीठ ने प्रदेश भर के सभी फार्मासिस्टों का डाटा बेस तैयार कर उसे आधार नंबर से न जोड़ने पर गंभीर रुख अपनाते हुए फूड सेफ्टी एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग के प्रमुख सचिव को व्यक्तिगत रूप से पांच फरवरी को तलब किया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव से स्पष्टीकरण मांगा है कि क्यों न जानबूझकर आदेश की अवहेलना करने पर उनके खिलाफ अवमानना का आरोप तय किया जाए। यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल व जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच ने आशा वर्मा की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याचिका में कहा गया है कि पूरे प्रदेश में रजिस्टर्ड फार्मासिस्टों की संख्या की तुलना में दवा की दुकानों की संख्या काफी अधिक है। तर्क दिया गया था कि ड्रग्स एवं कास्मेटिक एक्ट 1940 और उसके अधीन बने नियमों के तहत यह अनिवार्य है कि हर दवा की दुकान पर एक फार्मासिस्ट होगा जो दुकान खुलने तक दुकान पर मौजूद रहेगा। आरोप लगाया गया कि वास्तव में ऐसा नही हो रहा है अपितु बड़ी संख्या में फर्जी फार्मासिस्ट दवा की दुकानें चला रहे हैं। कई बार तो यह भी देखने में आता है कि एक फार्मासिस्ट के लाइसेस से कई-कई दुकानें चलाई जा रही हैं जबकि नियमत: यह गैरकानूनी है। सरकार इस मसले पर कोई प्रभावी कदम नही उठा रही है। राज्य सरकार की ओर से कहा गया था कि 22 मार्च, 2017 को इस विषय में बैठक हुई थी जिसमें यह तय हुआ रजिस्टर्ड फार्मासिस्टों का डाटाबेस तैयार किया जाएगा और फिर कार्यवाही की जाएगी। इसके बाद कोर्ट ने 23 मई, 2017 को सरकार को आदेश दिया था कि तीन महीने के भीतर सभी फार्मासिस्टों का डाटाबेस तैयार किया जाए और सभी का डाटा उनके