सीतापुर : सीतापुर में 75 हजार बालिकाएं हैं शिक्षा से महरूम, हाउस होल्ड सर्वे पर उठे सवाल
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सीतापुर [शिवप्रकाश मिश्र]। बेटियों को तालीम दिलाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक संजीदा हैं, बावजूद इसके जिले की 75,175 हजार बालिकाएं स्कूल नहीं जा रही हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के सर्वे में इन बालिकाओं की उम्र 11 से 14 वर्ष है। केंद्र सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना समेत अन्य योजनाएं भी इन तक पहुंच सकी हैं।
अफसर इन बालिकाओं की शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं तो आर्थिक हालात के साथ इनके परिजन भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। शहर में भी बालिकाएं दुकान चलाकर परिवार की जीविका चला रही हैं तो कई बालिकाओं के सुनहरे दिन खेतों में गुजर रहे हैं।
बिटिया है इसलिए नहीं पढ़ाया: शहर के कांशीराम कालोनी निवासी खिलाड़ी की 14 साल की बेटी बीनू ने विद्यालय का मुंह नहीं देखा है। बीनू की मां जावित्री शहर में फुटपाथ पर मूंगफली व चने बेचती है तो खिलाड़ी सब्जी का ठेला लगाते हैं। तीन बच्चों में सबसे बड़ी बीनू है। सड़क से गुजरने वाले ग्राहकों को साहब संबोधन से बुलाकर मूंगफली खरीदने की गुजारिश करती है। दुकान पर मां का हाथ बटाने के अलावा घर का खाना बनाने में भी सहयोग करती है। बीनू से छोटा भाई प्राइवेट स्कूल में कक्षा चार में पढ़ता है लेकिन उसकी मां कहती है कि बेटी थी इसलिए नहीं पढ़ाया।
कक्षा चार के बाद ही छोड़ दी थी पढ़ाई: शहर के ही कांशीराम कालोनी निवासी गुड्डू शाह भी फुटपाथ पर मूंगफली बेचते हैं। पांच बच्चों में सबसे छोटी बेटी पिंकी को कक्षा चार तक पढ़ाने के बाद गुड्डू ने उसकी पढ़ाई छुड़वा दी। आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए गुड्डू बताते हैं कि पिंकी दुकान में हाथ बंटाती है। सरकारी मदद मिलने पर गुड्डू पिंकी की पढ़ाई फिर से कराने के लिए बुझे मन से हामी भरते हैं।
आर्थिक हालात खराब होने के कारण छूटी पढ़ाई: कसमंडा ब्लॉक के सरायं निवासी राजकुमार की पुत्री रागिनी ने आर्थिक हालात के चलते आठवीं पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। राजकुमार खेती-किसानी से परिवार की जीविका का संचालन कर रहे हैं। दो पुत्रियों में बड़ी बेटी सुधा की बीमारी के चलते इलाज के अभाव में खो चुके पिता की मजबूरी में रागिनी को भी आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। दो वर्ष पूर्व पढाई छोड़ने के बाद रागिनी पिता के साथ खेती में बराबर हाथ बंटा रही है।
मजबूरी में छोड़ी पढ़ाई: कसमंडा ब्लॉक के सरायं निवासी तेजपाल की पुत्री रोहिणी ने चार वर्ष पूर्व गुरुकुल को त्याग दिया था। पारिवारिक समस्याएं, गरीबी व स्कूल दूर होने के कारण रोहिणी को स्कूल छोड़ना पड़ा था। खेती करके परिवार चलाने वाले तेजपाल ने विपरीत हालात में रोहिणी को घर के बाहर ही 400 रुपये में दुकान खुलवा दी थी। दुकान पर बैठकर रोहिणी चंद रुपये कमाकर पिता का सहारा बनी है। रोहिणी फिर से स्कूल जाने के नाम पर बोल पड़ती है।
हाउस होल्ड सर्वे पर उठे सवाल: आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वे से उलट बेसिक शिक्षा विभाग का हाउस होल्ड सर्वे कुछ और कहानी बयां कर रहा है। इसमें 11 वर्ष की 57, 12 वर्ष की 103 तथा 13 वर्ष व इससे अधिक उम्र की 114 बालिकाएं ही जिले में ऐसी हैं जो विद्यालय नहीं जा रही हैं। विभाग का दावा है कि कुल 274 में से अधिकांश बालिकाओं को अभियान चलाकर विद्यालयों में नामांकन करा दिया गया है।
आंकड़ों में है भारी अंतर: दो सरकारी विभागों के आंकड़ों में भारी अंतर होने से साबित हो रहा है कि एक विभाग के आंकड़े तो सत्य से परे हैं। ऐसे में सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठना भी लाजिमी है। लेकिन इन सारी चीजों के बीच एक बात तो तय है कि विकास की ओर तेजी से बढ रहेहमारे देश में ऐसे हालात जब सामने आते हैं तो यह बात हमें कचोटती है कि क्या यही है विकास का सही पैमाना।