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मैनपुरी : बजट की बात चली तो शिक्षा के विकास ने भी उम्मीदें बांधनी शुरु कर दीं

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मैनपुरी : बजट की बात चली तो शिक्षा के विकास ने भी उम्मीदें बांधनी शुरु कर दीं

जागरण संवाददाता, मैनपुरी : बजट की बात चली तो शिक्षा के विकास ने भी उम्मीदें बांधनी शुरु कर दीं। जिले में तकनीकी शिक्षण संस्थानों के संचालन की आवाज मुखर होने लगी है। शिक्षक से लेकर शिक्षार्थियों तक हर कोई वित्त मंत्री से आस लगाए बैठा है कि जिले को भी एक उच्च शिक्षा संस्थान मिलेगा। ताकि, हर साल तकनीकी शिक्षा के लिए गैर प्रांतों का रुख करने वाले विद्यार्थियों को जिले में ही माहौल मिल सके।

उद्योग शून्य मैनपुरी में बेहतर शिक्षा के क्षेत्र में कुछ अच्छा नहीं हुआ। यहां स्कूल और कॉलेजों की तो भरमार है लेकिन कोई भी ऐसा नहीं है जो वास्तव में मानकों के मुताबिक बच्चों को ज्ञान दे सके। महंगी फीस और लुभावनी विवरण पत्रिका दिखाकर विद्यार्थियों को सिर्फ आकर्षित किया जाता है लेकिन गुणवत्तायुक्त शिक्षा नहीं मिल पाती है। इसका खामियाजा हुनरमंद विद्यार्थियों को भुगतना पड़ता है। यदि जिले में ही कोई तकनीकी शिक्षण संस्थान खुल जाए तो विद्यार्थियों को दूसरे जिलों का रुख न करना पडे़।

भानुप्रताप ¨सह, हरिदर्शन नगर।

इंजीनिय¨रग और मेडिकल की शिक्षा के लिए विद्यार्थियों को कोटा, ग्वालियर और दूसरे प्रांतों में जाना पड़ता है। 12वीं के बाद विद्यार्थियों के सामने सबसे बड़ा संकट उच्च शिक्षा संस्थान के चयन का होता है। स्कूलों में कभी भी विद्यार्थियों को करियर संबंधी जानकारी नहीं दी जाती है। सरकार को चाहिए कि बजट में विद्यार्थियों के हितों का भी ख्याल रखा जाए। ऐसे शिक्षण संस्थानों की स्थापना कराई जाए जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराई जा सके।

प्रशांत कुमार, देवपुरा।

12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद छात्राओं के सामने सबसे बड़ी समस्या आगे की पढ़ाई जारी रखने की होती है। घर से दूर रहकर तकनीकी शिक्षा की पढ़ाई का ख्वाब बीच में ही छोड़ना पड़ता है। यदि छात्राओं के लिए जिले मे ही शिक्षण संस्थानों की स्थापना कराई जाए तो उन्हें सहूलियत होगी। बजट में विद्यार्थियों के हितों को भी शामिल किया जाना चाहिए।

कामिनी सक्सेना, आगरा रोड।

ज्यादातर छात्राएं एबीबीएस, इंजीनिय¨रग के साथ कंप्यूटर कोर्सेस और दूसरी तकनीकी शिक्षा प्राप्त करना चाहती हैं। लेकिन, हकीकत यह है कि जिले में एक भी संस्थान ऐसा नहीं है जो हम छात्राओं को उच्च शिक्षा प्रदान करा सके। न तो विशेषज्ञ शिक्षक हैं और न ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा। ऐसे में जिले को छोड़कर दूसरे प्रांत में रहकर पढ़ाई करना सबसे बड़ी मजबूरी होती है।

पूनम, मुहल्ला अग्रवाल।

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