देवरिया : चंद्रभूषण शाही को शिक्षा से वंचितों को शिक्षित करने का जुनून, शिक्षा दान ही जीवन का लक्ष्य
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देवरिया: चंद्रभूषण शाही को शिक्षा से वंचितों को शिक्षित करने का जुनून है। वह स्कूली शिक्षा हो या मानव मूल्यपरक ज्ञान या फिर गीत-संगीत की बात हर एक क्षेत्रों में ये बच्चों के बीच शिक्षा दान को तत्पर रहते हैं। करीब एक दशक से शिक्षा दान को अपना लक्ष्य बना चुके हैं। शिक्षक की नौकरी से अवकाश ग्रहण करने का बाद भी गरीब व असहाय बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा दे रहे हैं।
देवरिया जनपद के ग्राम गड़ेर निवासी चंद्रभूषण शाही गड़ेर पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक पद से वर्ष 2017 में अवकाश ग्रहण किया है। नौकरी के दौरान शिक्षा के प्रति उनका समर्पण नए शिक्षकों के लिए नजीर था। अवकाश ग्रहण करने के बाद भी शिक्षा से उनका नाता नहीं टूटा है। वे वर्तमान में अपने घर के बरामदे में हर रोज कक्षा लगाते हैं। स्कूल व गैर स्कूली बच्चों के बीच निश्शुल्क शिक्षा की अलख जगाते हुए शिक्षा दान देने का काम कर रहे हैं। शुरुआत में तो संख्या काफी कम थी, लेकिन धीरे-धीरे बच्चों की संख्या 20 तक पहुंच गई है। प्रतिदिन तीन से पांच बजे तक कक्षा चलती है। उनका खास ध्यान दलितों व कमजोर वर्ग के बच्चों पर होता है। यह उनकी मेहनत का ही प्रतिफल है कि अब बच्चे निर्धारित समय पर खुद ही पढ़ने चले आते हैं। बच्चों को नाटक, संगीत, लोक नृत्य के क्षेत्र में न केवल आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं बल्कि इसका अभ्यास भी कराते हैं। जिन बच्चों के अभिभावक किताब व काफी खरीदने में असमर्थ हैं ऐसे बच्चों को शिक्षण सामग्री खुद की पेंशन के पैसे से उपलब्ध कराते हैं। उनके इस पवित्र मिशन की लोग न केवल सराहना कर रहे बल्कि अपने बच्चों को उनसे सीखने की नसीहत भी देते हैं। चंद्रभूषण का कहना हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों खासकर बालिकाओं में अशिक्षा की कमी दूर करने के खयाल से यह मार्ग चुना।
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बुजुर्गों को सहारे की जरूरत
शिक्षा के साथ सामाजिक मूल्यों में आ रही गिरावट से चंद्रभूषण शाही दुखी हैं। उनका मानना है कि बुजुर्गों का सम्मान हर हाल में होना चाहिए। बुजुर्गों की खुशियों में ही युवाओं का भविष्य होता है। घर, समाज व देश के लिए अपने उम्र गुजार देने वाले बुजुर्ग आज उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। युवाओं को अपने बुजुर्गों की सेवा व सम्मान के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। यह वैसे भी बुजुर्गों को सहारे की जरूरत होती है। युवा अगर बुजुर्गों का सहारा नहीं बनेगा तो समाज को भारी क्षति उठानी होगी। अपने बच्चों व पड़ोसियों के सुखमय जीवन की कामना करने वाले बुजुर्गों के शेष जीवन में खुशियां पहुंचाना युवाओं का परम कर्तव्य होता है। इस दिशा में युवाओं को गंभीर होना पड़ेगा।