हरदोई : बच्चों के आए स्वेटर, मचल रहा बड़ों का मन, परिषदीय विद्यालयों में बच्चों को देर से ही सही अब स्वेटर वितरण को हरी झंडी दी गई
हरदोई : स्वेटर तो बच्चों के आए हैं लेकिन बड़ों यानी कि अधिकारियों से लेकर नेताओं और कमीशन के खेल में शामिल लोगों का दिल मचल रहा है।
स्वेटर विद्यालय प्रबंध समितियों के माध्यम से खरीदे जाएंगे, लेकिन ड्रेस की तरह स्वेटर में भी खेल की तैयारी शुरू हो गई है। बच्चों की भले ही सर्दी दूर हो या न हो पर खेल में शामिल रहने वाले लोग भरपूर मजा लेने में जुट गए हैं।
परिषदीय विद्यालयों में बच्चों को देर से ही सही अब स्वेटर वितरण को हरी झंडी दी गई है। जिले के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले चार लाख 62 हजार 728 बच्चों को 200 रुपये प्रति स्वेटर के हिसाब से नौ करोड़ 25 लाख 45 हजार 600 रुपये से स्वेटर वितरण होगा। जिसमें से प्रथम किश्त के रूप में चार करोड़ 62 लाख 72 हजार 800 रुपये जारी हो गए हैं। शासन स्तर से जारी फरमान के अनुसार विद्यालय प्रबंध समितियों के माध्यम से कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को उनकी नाप के अनुसार स्वेटर वितरित किए जाएंगे। हर हालत में 30 दिन के अंदर स्वेटर वितरित किए जाने हैं। अब स्वेटर मिलने की उम्मीद से ही बच्चों के अंदर खुशी छाई है। उससे ज्यादा खेल में शामिल होने वाले लोग खुश हैं। स्वेटर वितरण ड्रेस की तरह ही होना है और वही प्रक्रिया अपनाई जानी है। अब ड्रेस में हर साल क्या होता है यह किसी से छिपा नहीं है। छोटा हो या मोटा बच्चों को एक ही नाप की ड्रेस पहना दी जाती रही। इतना ही नहीं 200 रुपये के स्थान पर कमीशन के खेल में अधिकतम 150 से 160 रुपये की ड्रेस दी गई। बाकी सब खेल की भेंट चढ़ गया। विभागीय अधिकारियों से लेकर नेता और उनके का¨रदों के हाथ में लगाम रही और उन्होंने ही मनचाही व्यवस्था बनाई।
कैसे उपलब्ध होंगे इतने स्वेटर बच्चों के स्वेटर में 30 दिन के अंदर स्वेटर वितरित होने हैं। चार लाख 62 हजार से अधिक बच्चों के लिए स्वेटर बाजार में उपलब्ध होना मुश्किल है। दुकानदारों का कहना है वह सब अभी से स्वेटर खरीदना शुरू कर देंगे तो भी करीब 15 दिन लग जाएंगे। ऐसे में स्वेटर की आपूर्ति ऊपर से ही होनी की बात कही जा रही है।
माल खाते बड़े बड़े फसते अध्यापक: ड्रेस हो या स्वेटर, वितरण की जिम्मेदारी विद्यालय प्रबंध समिति की होती है। कहने को तो विद्यालय के प्रधानाचार्य और समिति का अध्यक्ष वितरण कराता है, लेकिन काम सब बड़े-बड़े लोग ही करते हैं। अब कमीशन तो वह सब खाते हैं, लेकिन गर्दन अध्यापकों की फंसती है। ड्रेस में हर क्षेत्र में माननीयों से लेकर उनके का¨रदे सक्रिय रहे और एक एक विद्यालय में कई कई लोगों ने स्वेटर पहुंचाए। न लेने पर धमकाया भी जाता था। अब करे कोई लेकिन गर्दन तो अध्यापकों की फंसती है।