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इलाहाबाद : यूपी बोर्ड परीक्षा में तीसरी बार कसी जा रही नकल पर नकेल, शिक्षा महकमा ही नहीं पूरी सरकारी मशीनरी अंकुश लगाने को मोर्चे पर

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इलाहाबाद : यूपी बोर्ड परीक्षा में तीसरी बार कसी जा रही नकल पर नकेल, शिक्षा महकमा ही नहीं पूरी सरकारी मशीनरी अंकुश लगाने को मोर्चे पर

इलाहाबाद । यूपी बोर्ड की हाईस्कूल व इंटरमीडिएट परीक्षाएं हर वर्ष होती हैं। आमतौर पर सकुशल व शांतिपूर्ण परीक्षा कराने का दावा सरकारें करती आई हैं, लेकिन 2018 की परीक्षा एक बार फिर अलग हटकर कराने की तैयारी है।

अबकी मर्तबा सबसे ज्यादा चर्चा नकल रोकने को लेकर है। ऐसा भी नहीं है कि नकल रोकने के प्रयास पहली बार हो रहे हैं, बल्कि यह संयोग ही है कि दो दशक में तीसरी बार ठोस कदम उठाए जा रहे हैं और तीनों ही बार सूबे में भाजपा की सरकारें रही हैं। पहले अध्यादेश व अधिनियम के सहारे नकल रोकी गई, इस बार पुराने अधिनियम को प्रभावी बनाकर व शासनादेश जारी कर सरकार ने इरादे जता दिए हैं।

नकल विरोधी अध्यादेश 1992 : माध्यमिक शिक्षा परिषद यानि यूपी बोर्ड की परीक्षाओं में नकल का खेल काफी पुराना है, लेकिन यह लोगों की जुबां पर 1992 में नकल विरोधी अध्यादेश आने पर आया। कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्व में शिक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अध्यादेश लाकर नकल को गैरजमानती अपराध घोषित किया था। इसी अध्यादेश की वजह से हाईस्कूल व इंटर की परीक्षाओं में नकल पर प्रभावी अंकुश लगा और परीक्षा परिणाम निचले स्तर पर पहुंच गया था।

अनुचित साधन निवारण अधिनियम 1998 : सार्वजनिक परीक्षाओं में 1998 में अनुचित साधन निवारण अधिनियम लागू किया गया। इसमें नकल अध्यादेश के प्रावधान में ही कई संशोधन करके लागू किया गया। इसमें नकल रोकने के सख्त निर्देश जरूर थे लेकिन, परीक्षार्थियों को गैरजमानती अपराध में जेल भेजने आदि का प्रावधान नहीं था। संयोग से कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में ही प्रभाव में आया। हालांकि उस समय यह बहुत प्रभावी नहीं हो सका था, क्योंकि सूबे में नकल विरोधी अध्यादेश को लेकर अलग माहौल बना था।

पुराना अधिनियम, नया शासनादेश : आदित्यनाथ योगी सरकार ने सत्ता में आने के साथ ही नकल पर अंकुश लगाने के प्रभावी इंतजाम किए हैं। वह चाहे बोर्ड मुख्यालय पर परीक्षा केंद्रों का निर्धारण हो या केंद्रों पर सीसीटीवी के इंतजाम या फिर 83 हजार से अधिक परीक्षार्थियों का आवेदन निरस्त करना हो।

यही नहीं पहली बार परीक्षाओं में एसटीएफ जैसी एजेंसी की मदद ली जा रही है, वहीं जिला विद्यालय निरीक्षक को गोपनीय सूचनाएं देने के लिए एलआइयू का इस्तेमाल करने के निर्देश हुए हैं। सिर्फ शिक्षा महकमा ही नहीं पूरी सरकार के साथ सरकारी मशीनरी नकल रोकने में जुटाई गई है।

अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर माह अपर मुख्य सचिव संजय अग्रवाल वीडियो कांफ्रेंसिंग कर रहे हैं, पिछले दिनों उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी वीडियो कांफ्रेंसिंग कर चुके हैं। अब 30 जनवरी को मुख्यमंत्री अपने साथ मुख्य सचिव, डीजीपी व अन्य अफसरों को लेकर वीडियो कांफ्रेंसिंग करेंगे। सूत्रों की मानें तो बीस साल पुराने अधिनियम व ताजा शासनादेश को कड़ाई से लागू कराकर नकल रोकने की तैयारी की गई है।

1992 में नकल विरोधी अध्यादेश, 1998 और अब नकल रोधी शासनादेश

⬛ शिक्षा महकमा ही नहीं पूरी सरकारी मशीनरी अंकुश लगाने को मोर्चे पर

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