अमरोहा : पद से निवृत्त हुए शिक्षक से नहीं
गंगेश्वरी : कहावत है शिक्षक कभी सेवानिवृत नहीं होता। वह शिक्षक ही रहता है। शिक्षित करने का दायित्व हर जगह निभाता है। ऐसे ही हैं गंगेश्वरी के उच्च प्राथमिक विद्यालय खरपड़ी से जनवरी, 13 में सेवानिवृत हुए शिक्षक ज्ञानेंद्र ¨सह आर्य। वह बुढ़ापे में भी इल्म की रोशनी से हम उम्र के बुजुर्गों को रोशन कर रहे हैं।
ग्राम दढि़याल निवासी ज्ञानेंद्र ¨सह आर्य ने 2 मार्च 1972 से 30 जून 2013 तक बेसिक शिक्षा विभाग के परिषदीय स्कूलों में बच्चों को पढ़ाया। विभाग से रिटायर होने के बाद भी वह खुद का रिटायर नहीं मानते। बस फर्क इतना है कि पहले वह स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाते थे और अब अपने घर की बैठक में हम उम्र के बुजुर्गों को साक्षर बनाने के लिए पढ़ाते हैं। यह प्रेरणा उन्हें अपने गुरु रहरई निवासी शिक्षक लेखराज ¨सह से मिली। दरअसल लेखराज ¨सह ने भी सेवानिवृत्त होने के बाद मरते दम तक रहरई गांव के सरकारी स्कूल व कस्तूरबा गांधी विद्यालय में जाकर बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाना नहीं छोड़ा।
ज्ञानेंद्र ¨सह आर्य की मेहनत से बुढ़ापे में गांव निवासी यादराम ¨सह, ऋषिपाल ¨सह, अजब ¨सह व हेमराज ¨सह को हस्ताक्षर करना आ गया है। साथ ही उन्हें वर्णमाला का भी ज्ञान हुआ है। अब वह कहीं पर भी अंगूठा नहीं लगाते बल्कि बेझिझक अपने हस्ताक्षर करते हैं। शिक्षक ज्ञानेंद्र ¨सह आर्य गांव के 2 दर्जन बुजुर्गों को हस्ताक्षर करना सिखा चुके हैं। उनकी पाठशाला में 12 बुजुर्ग अभी भी नियमित पढ़ाई करते हैं।
ज्ञानेंद्र ¨सह आर्य की यह मुहिम वास्तव में शिक्षकों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। वह मानते हैं कि खुद को सेवानिवृत समझकर घर बैठ जाने से बेहतर दूसरों को इल्म सिखाना है।