लखनऊ : गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान नहीं ले सकते सीधा दाखिला
हिन्दुस्तान टीम, लखनऊ । कहा, संस्थान द्वारा अलग प्रवेश परीक्षा लेना सिंगल विंडो सिस्टम का उल्लंघन लखनऊ। विधि संवाददाता हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि गैर सहायता प्रात अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान बीटीसी, बीएड जैसे प्रोफेशनल कोर्सेज में सीधा दाखिला नहीं ले सकते। उनके द्वारा अलग से प्रवेश परीक्षा कराना सिंगल विंडो सिस्टम का उल्लंघन है। सभी संस्थानों को चाहे वह गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान ही क्यों न हों, कॉमन इंट्रेंस टेस्ट के माध्यम से ही छात्रों का दाखिला लेना होगा। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया के बारे में राज्य सरकार द्वारा नियमन करना अनुमन्य है। यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति डीएस त्रिपाठी की पूर्ण पीठ ने एरम गर्ल्स डिग्री कॉलेज समेत चार संस्थानों की याचिका में उठे प्रश्नों का जवाब देते हुए, पारित किया। सुनवाई के दौरान एसोसिएशन ऑफ अन-एडेड मायनॉरिटी यूनानी एंड आर्युवेदिक कॉलेज की ओर से भी हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र दिया गया था। एसोसिएशन के अधिवक्ता रजत राजन सिंह ने बताया कि याचिकाओं में 25 मई 2017 के उस शासनादेश को चुनौती दी गई थी जिसमें बीटीसी (डीएलएड) के सम्बंध में गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थानों को 50 फीसदी दाखिला ही अपने मर्जी से करने की छूट दी गई थी व बाकी के 50 फीसदी सीटों पर दाखिला राज्य सरकार द्वारा कॉमन टेस्ट के आधार पर बनी लिस्ट के आधार पर करने की बात कही गई थी। याचिकाओं में इसे संविधान के अनुच्छेद- 30 में अल्पसंख्यक संस्थानों को मिले अधिकारों का अतिक्रमण बताया गया था। पूर्ण पीठ ने दिया फैसलामामलों की सुनवाई कर रही एकल सदस्यीय पीठ ने सभी मामलों को पूर्ण पीठ को संदर्भित कर दिया। जिसके बाद पूर्ण पीठ ने 94 पृष्ठों के अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान द्वारा प्रोफेशनल कोर्स के सम्बंध में अलग से प्रवेश परीक्षा कराना व उक्त परीक्षा के आधार पर दाखिला लेना, सिंगल विंडो सिस्टम का उल्लंघन है। न्यायालय ने आगे कहा कि कॉमन इंट्रेंस टेस्ट के आधार पर प्रोफेशनल कोर्सेज में दाखिला देना न सिर्फ अनुमन्य है बल्कि वांछित भी है। हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि सरकार या सम्बंधित विश्वविद्यालय कॉमन टेस्ट की व्यवस्था नहीं करता तो संस्थानों का एसोसिएशन ऐसी परीक्षा करा सकता है ताकि दाखिले प्रक्रिया पारदर्शी रहे। न्यायालय ने इन ऑबजर्वेशंस के साथ मामलों को वापस एकल सदस्यीय पीट के समक्ष निस्तारण के लिए भेज दिया।