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अलीगढ़ : बाजार में एनसीईआरटी की किताबें, कमीशनबाजी ने डाला पर्दा

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बाजार में एनसीईआरटी की किताबें, कमीशनबाजी ने डाला पर्दा


Publish Date:Sat, 31 Mar 2018 08:00 AM (IST)अलीगढ़ : इसे स्कूल संचालकों व निजी प्रकाशकों की सेटिंग-गेटिंग कहा जाए या सरकारी तंत्र क...

अलीगढ़ : इसे स्कूल संचालकों व निजी प्रकाशकों की सेटिंग-गेटिंग कहा जाए या सरकारी तंत्र की कमजोरी कि बाजार में एनसीईआरटी की किताबें मुहैया हैं, लेकिन लगाई नहीं जा रहीं। सवाल ये भी है कि जब केंद्रीय विद्यालय की हर कक्षा में ये किताबें लगाई गई हैं और बच्चों को उपलब्ध भी हो रही हैं तो अन्य स्कूलों में ऐसा क्यों नहीं किया जा रहा? स्कूल संचालकों से एनसीईआरटी किताबों पर बात करें तो दलील आती है कि कक्षा एक से पांच तक की किताबें तो हैं ही नहीं। छह से आठ तक में एक-दो विषयों की एनसीईआरटी लगाई हैं। नौ से 12वीं कक्षा में पूरी किताबें एनसीईआरटी की हैं मगर सच्चाई बिल्कुल इसके उलट है। एक से पांच तक की कक्षाओं की एनसीईआरटी की हर किताब बाजार में मौजूद है। क्वार्सी स्थित दुर्गा बुक एजेंसी में केंद्रीय विद्यालय की हर कक्षा की एनसीईआरटी किताबों का भरपूर स्टॉक है। ये तो एक एजेंसी है ऐसी कई दुकानें शहर में हैं। जिले में इन किताबों को दिल्ली से मंगाने के लिए चार डिस्ट्रीब्यूटर आलोक पुस्तक सदन, अनवार बुक डिपो, केवी एंड सीएल व एसएस डिस्ट्रीब्यूटर भी हैं।

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कठिन डगर है एनसीईआरटी की : दुर्गा बुक एजेंसी के मालिक डीके भारद्वाज ने बताया कि एनसीईआरटी की किताबों में ज्यादा मुनाफा नहीं है। सस्ती किताबें हैं और प्रिंट रेट पर जाती हैं। डिस्ट्रीब्यूटर को एडवांस पेमेंट करना पड़ता है। इसके अलावा सबसे ज्यादा दिक्कत है कि अगर किसी स्कूल ने किताब नहीं लीं या माल रुक गया तो वो वापसी नहीं होती, रद्दी में बेचना पड़ता है।

एक से 10वीं तक की किताबें मंगाईं : आलोक पुस्तक सदन (डिस्ट्रीब्यूटर) के अतुल मित्तल बताते हैं कि कक्षा एक से 10वीं तक की किताबों की डिमांड भेजी गई है। सात से आठ अप्रैल तक आपूर्ति करने की बात कही गई है। साथ ही कहा कि पर्याप्त मात्रा में दिल्ली से आपूर्ति नहीं हो पाती है। मगर, ऑर्डर के आधार पर माल तो आता ही है। अभिभावक तो नाराज हैं। नेहा अग्रवाल का कहना है कि सबसे ज्यादा ढिलाई सरकार की है। वरना ऐसा नहीं है कि सरकार चाहे और एनसीईआरटी की किताबें न लगवा पाए। बाजार में किताबें हैं मगर स्कूल वाले नहीं लगाते, उन पर कोई एक्शन भी नहीं होता। विधि खन्ना का कहना है कि आखिर केंद्रीय विद्यालय में एनसीईआरटी कैसे लग जाती है? वैसी ही व्यवस्था हर स्कूल के लिए क्यों नहीं बनती? सब कमीशन की धांधली चल रही है। नीचे से ऊपर तक हर जगह 'खेल' है। रेखा बंसल का कहना है कि जब तक प्रशासन सख्त नहीं होगा तब तक ये मनमानी ऐसे ही चलती रहेगी। प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका भी ठीक नहीं है। पिछले साल कहा था एनसीईआरटी लगवाएंगे, इस साल सब हवा। पूजा वाष्र्णेय का कहना है कि एनसीईआरटी न लगाने के पीछे केवल कमीशनबाजी है। सस्ती किताबों से किसी को फायदा नहीं होने वाला। सरकार गहनता से जांच करे तो इसमें ऊपर तक तार जुड़े मिलेंगे।

अभिभावक एसोसिएशन के चेयरमैन सौरभ अग्रवाल का कहना है कि एनसीईआरटी की किताबें न लग पाने में प्रशासन पूरी तरह जिम्मेदार है। अभिभावक संघ इसका पुरजोर विरोध करेगा। एनसीईआरटी की थोड़ी कमी हो सकती है मगर इतनी नहीं कि कहीं किताब लगाई न जाए। केवी में कैसे एनसीईआरटी से पढ़ाया जा रहा है? पब्लिक स्कूल डेवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल का कहना है कि स्कूलों के प्रधानाचार्यो संग बैठक में यही बात सामने आती है कि एनसीईआरटी की किताबों की आपूर्ति पर्याप्त व समय पर नहीं हो पाती है। सेशन समय से शुरू करना होता है। किताब के इंतजार में सेशन लेट किया तो कोर्स पूरा कराने में दिक्कत।

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