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इलाहाबाद : भर्ती घोटाला, गड़बड़ियों में हर दल का दामन दागदार, उप्र लोकसेवा आयोग की भर्तियों में खामियों की छींटे सब पर पड़े

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इलाहाबाद : भर्ती घोटाला, गड़बड़ियों में हर दल का दामन दागदार, उप्र लोकसेवा आयोग की भर्तियों में खामियों की छींटे सब पर पड़े

इलाहाबाद उप्र लोकसेवा आयोग की न तो सीबीआइ जांच पहली बार हो रही है और न ही भर्ती में गड़बड़ी के खुलासे पहली मर्तबा हुए हैं। हकीकत तो यही है कि आयोग में सपा शासनकाल ही नहीं हर दल की सरकार में भर्ती की खामियां रह-रहकर उजागर होती रही हैं। जांच के नाम पर खानापूरी जरूर हुई है और तमाम आश्वासन भी दिए जाते रहे। पहली बार योगी सरकार ने सत्ता में आने के छह माह के अंदर जांच कराने का वादा पूरा किया साथ ही सलीके से सीबीआइ जांच का मार्ग भी प्रशस्त किया है। 1आयोग व उसकी भर्तियों में गड़बड़ियों का चोली-दामन सरीखा साथ रहा है। कांग्रेस के राज में 1985 की पीसीएस परीक्षा में अपर जिला बेसिक शिक्षा (महिला) के चयन में श्रेष्ठता सूची में अधिक अंक प्राप्त करने वाली अभ्यर्थियों का चयन नहीं हुआ। यह मामला किसी तरह सीबीआइ को सिपुर्द जरूर हुआ लेकिन, उस समय न तो जांच का नोटीफिकेशन हुआ और न ही सही से पड़ताल हुई। सिर्फ खानापूरी की गई। 1986 पीसीएस में चयनित विनय कुमार पांडेय अब तक आयोग की एक गलती से उबर नहीं सके हैं। 1990 में तत्कालीन जनता दल सरकार में चयनित लोक निर्माण के अवर अभियंता अब तक वरिष्ठता पाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। आयोग और शासन के बीच पत्रचार हो रहा है और अवर अभियंता लंबे समय से पदोन्नति की राह देख रहे हैं। 11992 में आयोग ने एक अभ्यर्थी को 150 अंकों के प्रश्नपत्र में 155 अंक तक दे दिए थे। वहीं, सूबे में स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारियों के चयन में गड़बड़ी की जांच का आदेश बसपा शासनकाल में नहीं हो सका। आयोग की भर्तियों में पिछले कई दशकों में जितनी गड़बड़ियां अलग-अलग सरकारों के कार्यकाल में हुईं, उससे अधिक मामले सपा शासनकाल में ही सामने आने पर प्रतियोगियों ने सड़क से लेकर न्यायालय तक संघर्ष किया। 1भाजपा ने भी प्रतियोगियों से 2014 लोकसभा चुनाव के समय वादा जरूर किया लेकिन उस पर अमल करने की बारी आई तो नियमों की दुहाई दी। पिछले वर्ष 19 मार्च को योगी सरकार के प्रदेश की कमान संभालते ही आयोग की उल्टी गिनती शुरू हुई। सत्ता में आने के चौथे दिन ही आयोग में साक्षात्कार व परीक्षा परिणाम जारी करने पर रोक लगाई गई। आयोग के इतिहास में पहली बार सूबे की चुनी हुई सरकार ने इस तरह का कदम उठाया था। 1मुख्यमंत्री ने छह माह के अंदर ही पहले विधानसभा में आयोग की सीबीआइ जांच का एलान किया और फिर कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा। दृढ़ इच्छाशक्ति का ही यह परिणाम रहा कि सीबीआइ ने भी पहले नोटीफिकेशन जारी किया और बाद में पीई प्रथम रिपोर्ट दर्ज करके बाकायदे जांच शुरू की है। 1सरकार ही सीबीआइ भी आयोग की गड़बड़ियां खंगालने में गंभीर रही है। जांच एजेंसी ने यहां बाकायदे कैंप कार्यालय खोला है। हालांकि अभी नतीजे आना शेष है।

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