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हापुड़ : स्कूलों में कैद हुए बच्चे, अभिभावक परेशान

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हापुड़ : स्कूलों में कैद हुए बच्चे, अभिभावक परेशान

जागरण संवाददाता, हापुड़ : बवाल के दौरान बच्चों को छुट्टी होने के बावजूद स्कूल में ही कैद होकर रहना पड़ा। असामाजिक तत्वों ने स्कूल बसों तक को निशाना बनाया और जमकर तोड़फोड़ की। भय के चलते स्कूल संचालकों ने बवाल काबू में आने के बाद ही बच्चों को उनके घर भेजा। इस दौरान अभिभावक भी बच्चों की सुरक्षा को लेकर ¨चतित रहे। परिषदीय व निजी स्कूलों के शिक्षक भी बवाल के डर से स्कूल बंद होने के बावजूद घंटों देरी से घर पहुंचे।

हापुड़ में भारत बंद के चलते स्कूलों का अवकाश घोषित किया जाना चाहिए था, लेकिन प्रशासन की चूक के चलते ऐसा नहीं किया गया। गनीमत रही कि स्कूल संचालकों की समझदारी के चलते कोई बच्चा असामाजिक तत्वों की हरकतों का शिकार नहीं हुआ। सुबह आठ बजे स्कूल पहुंचे बच्चे दोपहर तीन बजे के बाद ही स्कूलों से वापस घर पहुंच सके। हालांकि अप्रैल से ही स्कूलों का समय सुबह आठ बजे से दोपहर एक बजे तक किया गया है। इस दौरान लगातार स्कूलों में फोन बजते रहे और अभिभावक अपने बच्चों की कुशलता के बारे में जानकारी लेते रहे। अभिभावकों को ¨चता थी कि उनके बच्चे किस तरह घर पहुंचेंगे।

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हापुड़ के प्रसिद्ध स्कूल जिन मार्गो पर हैं, उन सभी मार्गो पर असामाजिक तत्वों ने कब्जा किया हुआ था। नगर के सभी चौराहों पर बवाल मचाया जा रहा था। ऐसे में अभिभावकों की ¨चता स्वभाविक थी। कई बच्चों की प्रवेश परीक्षा छूटी : अगली कक्षा में प्रवेश लेने के लिए बच्चों को सोमवार को बुलाया गया था, लेकिन शहर में जिस तरह बवाल मचाया गया, उसे देखते हुए अभिभावकों ने अपने बच्चों को घर में ही रखना बेहतर समझा। जिसके चलते अनेक बच्चों की प्रवेश परीक्षा छूट गई। अब स्कूल संचालकों के ऊपर है कि वे दोबारा बच्चों को प्रवेश के लिए परीक्षा लेते हैं कि नहीं। शिक्षक भी हुए परेशान : स्कूल के बाद घर जाने के लिए शिक्षक भी परेशान रहे। परिषदीय और निजी स्कूलों में अनेक शिक्षक पिलखुवा, गाजियाबाद, नोएडा, बुलंदशहर से आते-जाते हैं, लेकिन बवाल के चलते शिक्षक जहां थे, वहीं फंसकर रहने को मजबूर हुए। सीबीएसई की परीक्षा ने भी बढ़ाई परेशानी : सोमवार को सीबीएसई बोर्ड की इंटरमीडिएट ¨हदी और हाईस्कूल संस्कृत की परीक्षा थी। कई बच्चों को दूरदराज के केंद्रों में परीक्षा देने जाना था, लेकिन बवाल के चलते सभी डरे और सहमे हुए थे। किसी न किसी तरह अभिभावकों ने अपने बच्चों को परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाया। हालांकि इस दौरान परिजन की सांस अटकी रही।

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