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नई दिल्ली : उप्र सरकार के फीस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती, योगी सरकार ने 9 अप्रैल को निजी स्कूलों की फीस के लिए जारी किया था अध्यादेश

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नई दिल्ली : उप्र सरकार के फीस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती, योगी सरकार ने 9 अप्रैल को निजी स्कूलों की फीस के लिए जारी किया था अध्यादेश

माला दीक्षित ’ नई दिल्ली । निजी स्कूलों ने उत्तर प्रदेश सरकार के फीस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इंडिपेंडेंट स्कूल्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने शीर्ष न्यायालय में याचिका दाखिल कर यूपी सेल्फ फाइनेंस्ड इंडिपेंडेंट स्कूल्स (फिक्सेशन ऑफ फीस) अध्यादेश 2018 को असंवैधानिक घोषित कर रद किए जाने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि यह अध्यादेश समानता के अधिकार व रोजगार की आजादी के मौलिक अधिकारों का हनन करता है। याचिका में अध्यादेश पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की गई है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने गत 9 अप्रैल को फीस अध्यादेश जारी कर निजी स्कूलों की फीस नियमित करने के नियम बनाए हैं। निजी स्कूलों ने वकील रवि प्रकाश गुप्ता के जरिये दाखिल याचिका में अध्यादेश का विरोध करते हुए कहा है कि इसमें निजी स्कूलों की फीस नियमित करने के बनाए गए नियम ठीक नहीं हैं। कहा है कि निजी क्षेत्र के वे स्कूल भी इसके दायरे मे आते हैं, जो सीबीएसई और आइसीएसई बोर्ड से संबद्ध हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि सीबीएसई और आइसीएसई बोर्ड से संबंधित स्कूलों को पहले ही राज्य सरकार शिक्षकों की योग्यता और फीस तय करने के बारे में अनापत्ति प्रमाणपत्र दे चुकी है। सीबीएसई पहले ही शिक्षकों को अच्छा वेतन देने के लिए फीस स्ट्रक्चर तय करने की कमेटी बना चुका है। अब इस नए अध्यादेश के जारी होने के बाद राज्य के निजी स्कूल फीस के मुद्दे पर दो नियमों से संचालित होंगे। एक तो सीबीएसई के नियम से जिसकी पहले ही कमेटी बनी हुई है और दूसरी इस अध्यादेश से। याचिकाकर्ता का कहना है कि अध्यादेश का जरिया विशेष परिस्थितियों में अपनाया जाता है। जबकि इस मामले में ऐसा नहीं है, क्योंकि यहां पहले ही इस बारे में उत्तर प्रदेश सेल्फ फाइनेंस्ड इंडिपेंडेंट स्कूल्स (रेगुलेशन ऑफ फीस) विधेयक 2017 तैयार हो चुका है। सरकार ने जानबूझकर दो महीने चले बजट सत्र में इस विधेयक को नहीं पेश किया।

अध्यादेश इसी सत्र 2018-19 से लागू कर दिया गया है, जबकि अभी तक इस बारे मे कोई नियम कायदे तय नहीं हुए हैं। अध्यादेश के मुताबिक, नियम तय न होने और कमेटी गठित न होने तक डिवीजनल कमिश्नर स्वत: संज्ञान लेकर स्कूल से फीस स्ट्रक्चर पेश करने को कह सकता है। न सिर्फ मौजूदा सत्र के बारे में बल्कि पिछले तीन वर्षो के फीस स्ट्रक्चर भी मांग सकता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी। सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में टीएमए पई केस में शिक्षा की गुणवत्ता पर जोर दिया है।

निजी स्कूलों का कहना है कि पहले ही शिक्षा के अधिकार कानून के तहत केंद्र सरकार 25 फीसद सीटें गरीबों के लिए मुफ्त घोषित कर चुकी हैं और अब बाकी बची 75 फीसद सीटों को भी उत्तर प्रदेश सरकार ने इस अध्यादेश के जरिये ले लिया है। ये भी कहा है कि मौजूदा शैक्षणिक सत्र गत एक अप्रैल से शुरू हो चुका है, जबकि अध्यादेश उसके नौ दिन बाद लागू हुआ है। अध्यादेश के प्रावधानों के मुताबिक इस सत्र में उसे लागू करना मुमकिन नहीं होगा।

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