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महराजगंज : कौन कहता है कि "आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों" दुष्यन्त कुमार के इस कविता को चरितार्थ किया है, एक प्राथमिक विद्यालय 

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गोरखपुर : कौन कहता है कि ‘आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।’ दुष्यन्त कुमार के इस कविता को चरितार्थ किया है। एक प्राथमिक विद्यालय के साधारण से टीचर ने जी हां। दरअसल, यूपी के महाराजगंज के मोहनगढ़ में एक अध्यापक की मेहनत ने छोटे से गांव के सरकारी प्राइमरी स्कूल को सीमित संसाधनों के बावजूद कान्वेंट स्कूल से बेहतर बना दिया है।

कान्वेंट स्कूल तक को पछाड़ रहा –

इस स्कूल में बच्चों को वो सभी सुविधाएं दी जा रही हैं जो कि एक कॉन्वेंट स्कूल में मिलती हैं। यहां की हाई-टेक सुविधाओं का श्रेय प्रिंसिपल नागेंद्रचौरासिया को जाता है। जिसने अपनी मेहनत और टीम वर्क से आज इस प्राथमिक विद्यालय की कायाकल्प ही बदल दी जिससे बच्चों के साथ आज उनके अभिभावक भी खुश है।

कहने को तो ये एक सरकारी स्कूल है, लेकिन शिक्षकों की सूझ-बूझ और कर्तव्यनिष्ठा ने इसे आम सरकारी स्कूलों से अलग ला खड़ा किया है। आलम यह है कि अब यह प्राथमिक स्कूल अच्छे–अच्छे कान्वेंट स्कूलों को पीछे छोड़ता नजर आ रहा है।

यह है खासियत –

स्कूल में पढ़ाई का स्तर, शिक्षकों की सक्रियता और बेमिसाल अनुशासन के अलावा स्मार्ट क्लासेज और अंग्रेजी माध्यम की कक्षाएं इसे विशिष्टता दे रही हैं।

खास बात यह है कि यह अभिनव प्रयोग यहां के शिक्षकों ने स्वयं शुरू किया, जो अब एक नजीर के रूप में सामने है। इस विद्यालय में पहले जहां केवल 20 से 25 बच्चे पढ़ा करते थे और शिक्षा का स्तर निम्न था वहीँ आज उनके मेहनत, लगन और टीम वर्क से महज डेढ़ साल में 220 बच्चें हो गए।


इस विद्यालय की शिक्षा किसी भी कान्वेंट स्कूल से बेहतर होती है। बच्चे प्रतिदिन स्कूल समय से आते है और हिंदी और अंग्रेजी में प्रेयर करते है और उसके बाद इन बच्चों की शुरू होती है पढ़ाई जो और विद्यालयों से कुछ अलग होती है।

यहाँ आध्यपको द्वारा स्मार्ट क्लासेज चलाई जाती है जिसको एलईडी टीवी से आडियो और वीडियो के माध्यम से समझाया जाता है जिसको बच्चे काफी आसानी से समझते और सिखाते है। इस विद्यालय में बच्चों को योगा, संगीत जैसे तमाम ज्ञान दिया जाता है। जिससे आज इस स्कूल के बच्चे काफी खुश है और वो आज मन लगाकर पढ़ाई कर रहे है। वहीँ गुरुजी के इस पहल का लाभ आज गांव के लोगो को मिल रहा है जो अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूल में पढ़ाई के लिए गांव से दूर भेजते थे आज वहाँ से उनका नाम कटा कर अपने गांव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ा रहे हैं।

‘ये’ स्कूल ‘बाकी’ प्राथमिक स्कूल को एक सीख –

इससे साबित होता है कि अगर जिम्मेदारों में इच्छा शक्ति हो तो सरकारी स्कूलों को भी प्रतिष्ठित निजी स्कूलों को टक्कर देने वाला मॉडल स्कूल बनाया जा सकता है आज यहां बच्चों के बढ़ते नामांकन के चलते आज जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है।

प्रिंसिपल नागेंद्र चौरसिया ने बताया कि आज अपनी टीम के साथ मिलकर इस स्कूल को सीमित संसाधनों में एक बेहतर स्कूल बनाने का प्रयास किया है। अपने निजी प्रयासों से आज इस विद्यालय के हर कमरों में पंखा लगा है जिससे बच्चे गर्मी में भी पढ़ाई कर सके । स्कूल में इन्वर्टर लगा है स्मार्ट क्लास के लिए एलईडी टीवी लगा है और प्रेयर के लिए माइक भी लगा है । हर क्लास रूम को एक शहीदों के नाम दिया गया है जिससे बच्चे उनके महत्व को समझे । आज इन गुरुजी के मेहनत से  बच्चो को बेसिक जानकारी के साथ अंग्रेजी भी फर्राटेदार बोल लेते है जिसका सरकारी स्कूल से कल्पना ही नही जा सकता।

वहीँ महाराजगंज के जिला अधिकारी अमरनाथउपाध्याय ने बताया कि  इस तरह सरकारी स्कूलों में हर टीचर मेहनत से बच्चों को पढ़ाये तो वो दिन दूर नही जब अभिवाहक अपने बच्चो को सरकारी स्कूलों में भेजने से कतराएंगे नही।

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