लखनऊ : तबेले में स्कूल, विकास और तरक्की के लाख दावे करें, लेकिन 21 वीं शताब्दी में भी जमीनी हकीकत बेहद कड़वी और सामाजिक तौर पर पिछड़ेपन को दर्शाती है यह तस्वीर
हम विकास और तरक्की के लाख दावे करें, लेकिन 21 वीं शताब्दी में भी जमीनी हकीकत बेहद कड़वी और सामाजिक तौर पर पिछड़ेपन को दर्शाती है। यह तस्वीर देश की शिक्षा व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए काफी है। बिहार के सहरसा जिले के बख्तियारपुर प्रखंड स्थित नवसृजित इजराहा प्राथमिक विद्यालय गाय-भैंसों के तबेले में चल रहा है। वर्ष 2005 में कागजों पर यह विद्यालय अस्तित्व में आ गया था, लेकिन इसे भवन नसीब नहीं हुआ। एक ग्रामीण ने अपना तबेला दे दिया और शुरू हो गया स्कूल। यहां करीब 120 बच्चे और तीन शिक्षक हैं। बच्चे जब सस्वर पाठ याद करते हैं तो मवेशी रंभाते हैं। इतना ही नहीं, जिसमें बड़े बर्तन में मध्याह्न भोजन तैयार किया जाता है, उसी में मवेशियों को चारा भी खिलाया जाता है ’ मो. नजारुल हकहम विकास और तरक्की के लाख दावे करें, लेकिन 21 वीं शताब्दी में भी जमीनी हकीकत बेहद कड़वी और सामाजिक तौर पर पिछड़ेपन को दर्शाती है। यह तस्वीर देश की शिक्षा व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए काफी है। बिहार के सहरसा जिले के बख्तियारपुर प्रखंड स्थित नवसृजित इजराहा प्राथमिक विद्यालय गाय-भैंसों के तबेले में चल रहा है। वर्ष 2005 में कागजों पर यह विद्यालय अस्तित्व में आ गया था, लेकिन इसे भवन नसीब नहीं हुआ। एक ग्रामीण ने अपना तबेला दे दिया और शुरू हो गया स्कूल। यहां करीब 120 बच्चे और तीन शिक्षक हैं। बच्चे जब सस्वर पाठ याद करते हैं तो मवेशी रंभाते हैं। इतना ही नहीं, जिसमें बड़े बर्तन में मध्याह्न भोजन तैयार किया जाता है, उसी में मवेशियों को चारा भी खिलाया जाता है ’ मो. नजारुल हक