ऐसा हो हर सरकारी स्कूल तो बन जाए बात
जब ये इतने बेहतर बन सकते हैं तो देश का हर सरकारी स्कूल क्यों नहीं, स्कूल चलें हम
मो. तकी, चाईबासा1सोच और इच्छाशक्ति हो तो प्रयास सार्थक साबित होता है। देश के ग्रामीण अंचलों के सरकारी स्कूलों की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। लेकिन इन्हीं में से कोई निजी स्कूलों को पीछे छोड़ता हुआ दिखे तो एक उम्मीद बंधती है। झारखंड और पंजाब के ये स्कूल प्रेरक उदाहरण के रूप में सामने हैं। झारखंड के गांवों की ओर रुख करें तो यहां सरकारी स्कूलों की बदतर तस्वीर सामने आती है। ऐसे में नक्सल प्रभावित पश्चिम सिंहभूम जिले के चार कस्तूरबा आवासीय विद्यालय और एक आदर्श मध्य विद्यालय नया अध्याय लिख रहे हैं। इन्हें देख कर कोई भी चकित रह जाएगा। राज्य के निजी स्कूलों में भी ऐसी व्यवस्था नहीं है। पढ़ाई, स्वच्छता व अनुशासन के मामले में इनके सामने महंगे निजी स्कूल मात खाते नजर आते हैं। इन सरकारी स्कूलों के नाम हैं- सदर चाईबासा कस्तूरबा विद्यालय, खूंटपानी कस्तूरबा विद्यालय, चRधरपुर कस्तूरबा विद्यालय, टोंटो कस्तूरबा विद्यालय और आदर्श मध्य विद्यालय बड़ाजामदा। चार कस्तूरबा विद्यालयों में सिर्फ छात्रएं पढ़ती हैं, जबकि आर्दश मध्य विद्यालय में छात्र व छात्रएं दोनों पढ़ते हैं। इन स्कूलों को स्वच्छता के लिए राज्य स्तरीय पुरस्कार से मुख्यमंत्री इसी वर्ष सम्मानित भी कर चुके हैं। 1इन सरकारी स्कूलों के चकाचक शौचालय, साफ-सुथरे भवन व हरे-भरे सुंदर बगीचे को देखकर कोई नहीं कह सकता कि ये सरकारी स्कूल हैं। बच्चों के लिए हर सुविधाएं इनमें मौजूद हैं। पेयजल के लिए आरओ मशीन उपलब्ध है। हाथ धोने और अन्य जरूरी कार्य के लिए अलग से दर्जनभर पानी के टैब लगाए गए हैं। साफ-सुथरे शौचालय, साबुन और हैंडवास, इतना ही नहीं शौचालय में प्रवेश के लिए अलग चप्पलें भी रखी गई हैं। भोजन कक्ष में डाइनिंग टेबल की व्यवस्था है। सभी विद्यार्थी साथ खाना खाते हैं। 1सरोकार की अन्य खबरें पढ़ें.. 666.Aं¬1ंल्ल.ङ्घे/3स्र्रङ्घ2/स्र2्र3्र5ी-ल्ली62श्रीमुक्तसर साहिब, पंजाब के गांव सरावां बोदला के प्राइमरी स्कूल में मिड-डे मील में खीर खाते बच्चे। जागरणमिड-डे मील में देसी घी और खीर.. 1सरबजीत सिंह, श्री मुक्तसर साहिब : श्री मुक्तसर साहिब, पंजाब स्थितढाणी गोबिंद नगरी के सरकारी स्कूल में मिड-डे मील में रोज देसी घी से बना खाना और शनिवार को काजू-बादाम से बनी खीर मिलती है। शिक्षकों के बुलंद हौसले और जनसहयोग के सुमेल ने यह संभव कर दिखाया। खस्ताहाल हो चुकी स्कूल की इमारत में हालांकि अभी एक ही कमरा पढ़ाने लायक है पर इसके भी दिन फिरने की आस है।