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अमरोहा : स्कूल-कालेज सजग तो सुरक्षित रहेगा बचपन

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अमरोहा : बाल यौन शोषण की रोकथाम को मजबूत कानून के साथ ही सामाजिक जागरूकता भी जरूरी है...

अमरोहा : बाल यौन शोषण की रोकथाम को मजबूत कानून के साथ ही सामाजिक जागरूकता भी जरूरी है। अभिभावकों को भी स्कूल-कालेजों के शिक्षकों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित कर बीच-बीच में संवाद करना जरूरी है। वहीं अभिभावकों के साथ ही स्कूल-कालेज भी सजग होंगे तो बाल यौन शोषण अपराध को कम से कमतर किया जा सकेगा।

 

लिटिल स्कॉलर अकादमी की प्रधानाचार्य डॉ.अनुराधा बंसल कहती हैं कि देशभर के अलग-अलग हिस्सों से आए दिन बच्चों और किशोरों के यौन शोषण की घटनाएं सामने आती हैं। दो साल से लेकर 12-13 साल के किशोरों और किशोरियों के यौन शोषण की घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) या यूनिसेफ के आंकड़ों पर गौर करें तो बाल और किशोर यौन शोषण के कई मामलों में परिचित या करीबी ही शामिल पाए गए हैं। रिश्तेदारों से लेकर कोच और शिक्षक भी इस तरह के आरोपों के घेरे में आ चुके हैं।

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कहा ऐसे में दैनिक जागरण ने बाल और किशोर यौन शोषण की रोकथाम को जो मुहिम शुरू की है वह सराहनीय है। इससे बच्चों के साथ-साथ स्कूल-कालेज ही नहीं वरन उनके परिवार के लोगों में भी जागरूकता आएगी और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों को जागरूकता और सजगता के बल पर कम से कमतर किया जा सकेगा। स्कूल- कालेजों को तो शासन और बोर्ड की मंशानुरूप ठोस कदम उठाने चाहिए, साथ ही अभिभावकों को भी संवेदनशील होना पड़ेगा। बच्चों के साथ कठोरता के बजाए मित्रवत व्यवहार बनाएं। वहीं स्कूल-कालेजों को चाहिए कि स्कूल स्टॉफ को पूरी जांच पड़ताल के बाद ही रखें। चालक एवं परिचालकों का पुलिस वेरीफिकेशन कराने के बाद ही उन्हें रखें। स्कूल के चपरासी, टीचर व ड्राइवर व अन्य स्टाफ की गतिविधियों की भी कई स्तर पर स्कूल प्रबंधन को जांच करते रहना चाहिए। हर माह स्कूल-कालेजों में शिक्षक-अभिभावक संघ की बैठक का आयोजन करना चाहिए। इसमें दोनों पक्षों को ही बच्चों के शैक्षिक स्तर के साथ ही बच्चों की गतिविधियों पर आपस में खुलकर चर्चा करना चाहिए। अधिकांशत: अभिभावक बच्चे की हर गतिविधि के लिए स्कूल को ही जिम्मेवार ठहरा देते हैं। यदि शिक्षक और अभिभावकों में बेहतर समन्वय स्थापित होगा तो भविष्य के खतरे को दूर किया जा सकता है।

कहा वहीं कुछ अभिभावक थोड़े से लालच में बच्चों को प्राइवेट वाहनों से भेजते हैं, बहुत से बच्चे ऑटो व ई-रिक्शा आदि से स्कूल आते जाते हैं। जबकि इनके चालकों के करेक्टर के बारे में किसी को जानकारी नहीं होती। या उनके साथ जो सवारी बैठी है उसका व्यवहार बच्चों के साथ कैसा है। लेकिन कोई भी घटना होने पर सारा दोष स्कूल-कालेजों पर मढ़ दिया जाता है। वहीं छात्राओं की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए स्कूल प्रबंधन को ज्यादा संख्या में महिला स्टॉफ की तैनाती करनी चाहिए ताकि वह छात्राओं की समस्याओं का समाधान कर सकें। बीच-बीच में बच्चों की काउंस¨लग होनी चाहिए, वहीं नि:संकोच शिक्षक व अभिभावकों को बच्चों व्यवहार और उनकी गतिविधियों के बारे में खुलकर चर्चा करनी चाहिए।

श्रीमती बंसल कहती हैं कि अभिभावकों को बच्चों की अलमारी व उनके स्कूल बैग की बीच-बीच में जांच करनी चाहिए। स्कूल-कालेजों में पर्याप्त संख्या में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं, स्कूलों की बाउंड्रीवाल ऊंची होनी चाहिए ताकि बच्चे दीवार फांदकर बाहर न जा सकें। वहीं कुछ अभिभावक चाइल्ड रिसी¨वग कार्ड लापरवाही से रखते हैं और वह बच्चों के हाथ आ जाता है इससे उसके दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है। इसलिए स्कूल-कालेजों में सभी आने वालों की पहचान सुनिश्चित होनी चाहिए, लेकिन अभिभावकों को इसमें सहयोग करना चाहिए। ये सब उनके बच्चों की सुरक्षा और बेहतरी के लिए ही तो किया जा रहा है। यदि स्कूल-कालेजों के साथ ही अभिभावक भी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए सजग होंगे तो बाल यौन शोषण की घटनाओं को कम से कमतर किया जा सकेगा।

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