मजदूरी के स्याह अंधेरे में किया शिक्षा का उजियारा
आगरा: चाइल्ड लाइन के प्रयासों से मोहल्लों के बच्चों में शिक्षा के प्रति जागरूकता आई है।...
जागरण संवाददाता, आगरा:शाहगंज के राम नगर की एक बस्ती में दो दर्जन से अधिक बच्चे आसपास की दुकानों या कारखानों में काम करते थे। जबकि मोहल्ले की अधिकांश बच्चियों का दिन चांदी की पायल में लगने वाले घुंघरु बनाने में निकल जाता था। मजदूरी करने वाले इन बच्चों की दुनिया घर और कारखाने के इर्द गिर्द सिमटकर रह गई थी। चंद रुपयों की खातिर उनका बेशकीमती बचपन बर्बाद हो रहा था। ऐसे में चाइल्ड लाइन की रितु वर्मा, दीपमाला एवं आरती ने इन बच्चों को स्कूल की राह दिखाने की ठानी। कई साल की उनकी कोशिश रंग लाई, वर्तमान में बस्ती के दो दर्जन बच्चों ने स्कूल में प्रवेश ले लिया है। इसके साथ ही परिवार को मिलने वाले कामों में हाथ बंटा आर्थिक मदद भी कर रहे हैं।
केस दो: जगदीशपुरा के सब्जी मंडी के पास वाली बस्ती के घरों में शू अपर, बॉटम, फीता आदि बनाने का काम होता है। ठेके पर काम करने वाले परिवारों ने अपने बच्चों को भी इस काम में लगा रखा था। चाइल्ड लाइन के सदस्यों ने अभिभावकों को शिक्षा का महत्व समझाने का प्रयास किया। अभिभावकों को बताया कि शिक्षा हासिल करने के बाद बच्चे उनके छोटे से काम को कारोबार का रूप दे सकेंगे। नरेंद्र परिहार, रितु वर्मा और दीपमाला ने बस्ती में बच्चों की दो घंटे की क्लास लगानी शुरू कीं। इसमें कई सप्ताह तक कुछ ही बच्चे जिनमें लड़कियां थीं, उन्होंने रुचि दिखाई। लगातार काउंसिलिंग से स्थिति बदली। वर्तमान में यहां 35 बच्चों की नियमित क्लास लगती है।
चाइल्ड लाइन में कार्यरत रितु, दीपमाला और भारती बताती हैं शुरुआत में इन बच्चों के परिवारों की काउंसिलिंग करने में दिक्कत आई थी, लेकिन मोहल्ले में जाकर दो घंटे पढ़ाने से महिलाओं की सोच में बदलाव आया। उन्हें समझ में आ गया कि यह सब उनके बच्चों की बेहतरी के लिए किया जा रहा है। इसके बाद महिलाओं ने बेटियों को भी दो घंटे चलने वाली क्लास में भेजना शुरू कर दिया। प्रारंभिक शिक्षा के बाद यह लड़कियां अब आगे की पढ़ाई करना चाहती हैं। वह जुलाई में स्कूल खुलने पर प्रवेश लेने की तैयारी कर रही हैं।
16 जगह शुरू हुआ था प्रयास
ताजनगरी में वर्ष 2011 में चेतना प्रोजेक्ट के तहत 16 जगहों पर स्कूल खोले गए थे। एक साल पहले प्रोजेक्ट का समय पूरा होने के बावजूद शिक्षा की मशाल इन मोहल्लों में अभी भी जल रही है।
छह साल में 97 बाल श्रमिक कराए मुक्त
आरटीआइ कार्यकर्ता नरेश पारस के मुताबिक श्रम विभाग से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी। इसके तहत वर्ष मार्च 2005 से 2012 के दौरान श्रम प्रवर्तन अधिकारियों ने 97 बाल श्रमिकों को उनके कार्य स्थल से मुक्त कराया। इन बच्चों को उनके अभिभावकों की सुपुर्दगी में बाल कल्याण समिति के माध्यम से दिया गया।
10 बंधुआ मजदूर मुक्त कराए, 28 का पुर्नवास
श्रम विभाग द्वारा वर्ष 2012 से मार्च 2018 के दौरान दस बंधुआ मजदूर मुक्त कराए गए। इनमें चार महिला एवं छह पुरुष थे। इन सभी बंधुआ मजदूरों को मुक्ति प्रमाण पत्र दिए गए। इतने ही वर्षो के दौरान विभाग ने जिले में 28 बंधुआ श्रमिकों का पुनर्वास कराया गया। इनमें 21 पुरुष और सात महिलाएं थीं।
वर्ष 2002 से मनाया जा रहा है दिवस
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने जागरूकता पैदा करने के लिए वर्ष 2002 में विश्व बाल श्रम दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की थी। इसका मकसद बाल श्रम का विरोध करना था।