इलाहाबाद : 20 साल बाद वैकल्पिक उपचार के आधार पर खारिज नहीं की जा सकती है याचिका, एकल पीठ का आदेश रद्द, नए सिरे से सुनवाई को याचिका वापस, बरेली के पीएसी कांस्टेबल की अपील पर दिया आदेश
सेनानायक की सेवा समाप्ति का आदेश रद
विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय फौज में नायक आरके महापात्र की सेवा समाप्ति का आदेश रद कर दिया है। साथ ही सेवा निरंतरता के साथ बहाली का निर्देश दिया है। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि सेवा समाप्ति से निर्णय आने तक के समय का बकाया वेतन याची को नहीं मिलेगा, जबकि उसे सेवा जनित प्राप्त होने वाले अन्य परिलाभ दिए जाएंगे। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल व न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने आगरा के आरके महापात्र की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपील पर अधिवक्ता एसके सिंह ने बहस की। कोर्ट ने एकल पीठ की ओर से याचिका खारिज करने के आदेश को भी रद कर दिया है। कोर्ट ने यह आदेश याची को कारण बताने का मौका न देने, प्रारंभिक जांच किए बिना निलंबित कर बाद में सेवा से हटाने में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन न करने पर दिया है। याची को 13 साल की सेवा होने के दौरान बिना अनुमति गैरहाजिर रहने पर दी गई फोर रेड इंक के आधार पर सेवा से हटा दिया गया था। याचिका में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ को पक्षकार बनाया गया था। कानूनी प्रक्रिया के विपरीत हटाने का आदेश कोर्ट ने रद कर दिया।
विधि संवाददाता’ इलाहाबाद । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिका 20 साल बाद वैकल्पिक उपचार के आधार पर खारिज नहीं की जा सकती। कहा कि कई साल बाद बिना सुने याचिका खारिज करने को सही नहीं कहा जा सकता। यह कहते हुए कोर्ट ने एकल पीठ के आदेश को रद कर दिया और नए सिरे से निर्णय के लिए याचिका वापस कर दी है।1यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी व न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की खंडपीठ ने आठवीं बटालियन पीएसी बरेली के कांस्टेबल गणोश कुमार की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपील पर अधिवक्ता डीसी द्विवेदी ने बहस की। मालूम हो कि याची को लंबी छुट्टी के बाद नशे की हालत में कार्यभार संभालते समय अधिकारियों से र्दुव्यवहार करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया, जिसके खिलाफ याचिका पर कोर्ट ने रोक लगाते हुए जवाब मांगा था।
विभागीय कार्यवाही में उसे हटा दिया गया। अपील भी खारिज हो गई, जिसे याचिका में चुनौती दी गई। कोर्ट ने सेवा से हटाने के आदेश पर भी रोक लगाते हुए जवाब मांगा, याची सेवारत रहा। दोनों पक्षों की तरफ से हलफनामे दाखिल हुए। कोर्ट ने 20 साल बाद याचिका की सुनवाई करते हुए याची से कहा कि विभागीय अपील के खिलाफ रिवीजन दाखिल करे। याचिका खारिज कर दी तो विशेष अपील में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने शीर्ष कोर्ट के फैसले के हवाले से कहा कि लंबे समय तक विचाराधीन याचिका की सुनवाई करने के बजाए वैकल्पिक उपचार उपलब्धता के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।