लखनऊ : अनिवार्य सेवानिवृत्ति में अफसरों को दिया कार्मिकों का जीवनयापन छीनने का मनमाना हक, मुख्य सचिव को ज्ञापन सौंपकर कर्मचारियों ने स्क्रीनिंग पर जताया विरोध, नीति बनाने व अक्षम कार्मिकों को तीन महीने का समय देने की उठाई मांग
लखनऊ : प्रदेश सरकार द्वारा 50 वर्ष से अधिक उम्र के अपने अक्षम व अयोग्य कार्मिकों को सेवानिवृत्त करने की समय सीमा निर्धारित किए जाने से राज्य कर्मचारियों में एक बार फिर आ गया है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडेय को पत्र भेजकर स्क्रीनिंग व सेवानिवृत्ति के क्रियान्वयन के लिए नीति बनाने की मांग की है। कर्मचारियों के साथ किए जा रहे मनमाने व्यवहार को प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध ठहराते हुए परिषद ने अयोग्य साबित होने वाले कार्मिकों को तीन महीने का समय दिए जाने की भी मांग की है।
परिषद अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी ने पत्र में मुख्य सचिव को बताया कि राज्य कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के लिए 31 जुलाई की समय सीमा तय किए जाने से कर्मचारी आक्रोशित हैं। इस मामले को लेकर परिषद एक साल पहले भी अपना विरोध दर्ज करा चुकी है। बुधवार को मुख्य सचिव को सौंपे पत्र में परिषद ने उत्तराखंड का उदाहरण देते हुए इसके लिए नीति निर्धारण की मांग की। परिषद ने मुख्य सचिव को प्रदेश के ऐसे कई उदाहरण बताये, जिसमें अनावश्यक दबाव और पद का दुरुपयोग करते हुए कई कर्मचारियों का उत्पीड़न करने की मंशा से उन्हें अक्षम व अयोग्य घोषित कर सेवामुक्त कर दिया गया।
यह है नियम
राज्य कर्मचारियों ने मुख्य सचिव को दिए पत्र में वित्तीय हस्त पुस्तिका (भाग दो से चार) के मूल नियम 56 का हवाला देते हुए बताया है कि किसी भी लोक सेवक को 50 वर्ष पूर्ण करने पर अनिवार्य सेवानिवृत किए जाने पर विचार किया जा सकता है, बशर्ते कि उस कर्मचारी का कार्य व आचरण दिन प्रतिदिन गिरता (खराब) जा रहा हो। इसके लिए भी प्रक्रिया तय की गई थी कि प्रत्येक वर्ष नवंबर के अंत तक स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा बैठक में कर्मचारियों के नामों पर विचार कर 15 दिसंबर तक नियुक्ति प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा 15 जनवरी तक इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। दूसरी तरफ इस प्रक्रिया से इतर कार्मिक विभाग ने अपने छह जुलाई के पत्र में 31 जुलाई तक हर हाल में स्क्रीनिंग की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया गया है।