इलाहाबाद : यूपीपीएससी की मनमानी रोकने को आरटीआइ हथियार
इलाहाबाद : गोपनीयता की आड़ लेकर अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट दिखाने से यूपी पीएससी (उप्र लोकसेवा आयोग) का इन्कार अब नहीं चलेगा। शीर्ष कोर्ट में पीसीएस जे के अभ्यर्थी मृदुल मिश्र की याचिका पर हुए फैसले ने यूपी पीएससी की मनमानी पर ब्रेक लगा दिया है। इसके साथ ही जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत यूपी पीएससी से ओएमआर शीट देखने का रास्ता भी अन्य अभ्यर्थियों के लिए खुल गया है।1यूपी पीएससी पर परीक्षाओं और अभ्यर्थियों के चयन में मनमानी के आरोप लगना अब आम बात हो गई है। परीक्षाओं में गड़बड़ी करके चयन में मनमानी का ही नतीजा है कि यूपी पीएससी से पांच साल के दौरान हुई भर्तियों की सीबीआइ जांच हो रही है। इसके बाद भी यूपी पीएससी परीक्षा परिणामों के साथ वेबसाइट पर यह संदेश अपलोड करने से बाज नहीं आ रहा है परिणाम के संबंध में जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत पृथक से कोई प्रत्यावेदन स्वीकार नहीं होगा। हालांकि जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 की ताकत से यूपी पीएससी लगातार हारा भी है। पीसीएस परीक्षा 2015 की अभ्यर्थी सुहासिनी बाजपेई की उत्तर पुस्तिका में गड़बड़ी का प्रकरण प्रदेश में काफी उछला था। लेकिन, जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत सुहासिनी के प्रत्यावेदन पर यूपी पीएससी ने मुख्य परीक्षा की उत्तर पुस्तिका दिखाई थी, जबकि ओएमआर शीट फिर भी नहीं दिखाई। जनसूचना अधिकार अधिनियम की ही ताकत रही जिससे यूपी पीएससी ने 2015 के बाद परीक्षाओं की उत्तर कुंजी को वेबसाइट पर अपलोड करना शुरू किया।