रामपुर : मदरसे में पहले से ही लागू है ड्रेस कोड, स्कूल हो या मदरसा, सभी का उद्देश्य ज्ञान बांटना है।
मुस्लेमीन, रामपुर : स्कूल हो या मदरसा, सभी का उद्देश्य ज्ञान बांटना है। फिर ऐसा क्यों दिखाना कि विद्या का मंदिर किसी विशेष धर्म के लोगों का है? विद्या के मंदिर में अमीर-गरीब हर वर्ग के बच्चे होते हैं। उनमें एकरूपता के लिए हर स्कूल में ड्रेस कोड होता है। बच्चे पैंट-शर्ट और टाई लगाकर जाते हैं। यहां सभी धर्म के बच्चे जाते हैं और एक समान दिखते हैं, लेकिन मदरसे में बच्चे सफेद कुर्ता और ऊंचा पायजामा पहनकर जाते हैं। इससे उनकी पहचान धर्म विशेष के रूप में होती है। प्रदेश के एक राज्यमंत्री के मदरसों में डेस कोड लागू करने के बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया है, लेकिन यहां हम बताना चाहते हैं कि रामपुर जनपद में एक मदरसा ऐसा है जहां छात्र बाकायदा पैंट शर्ट और टाई लगाकर आते हैं। यह व्यवस्था आज से नहीं, करीब 15 साल से है। रामपुर स्थित जमीयतुल अंसार मदरसा कुछ अलग है। इस मदरसे के छात्र, हिंदी, उर्दू, गणित और विज्ञान के साथ ही संस्कृत भी पढ़ते हैं। कंप्यूटर शिक्षा भी हासिल कर रहे हैं।1मदरसे की स्थापना 1951 में हाफिज कल्बे हसन अंसारी ने की थी। 1996 में उनकी मौत के बाद उनके बेटे खालिद हसन अंसारी ने मदरसा प्रबंधक के रूप में कमान संभाली। उन्होंने इसे दीनी तालीम के साथ ही दुनियावी तालीम से भी जोड़ा। उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के बाद सभी विषयों की पढ़ाई शुरू कराई। कान्वेंट स्कूलों की तरह मदरसे के बच्चों की ड्रेस भी तैयार कराई। मदरसे के छात्र नीली पैंट और सफेद शर्ट पर नीली टाई के साथ ही बैज और मोनोग्राम भी लगाते हैं।1मदरसे में कंप्यूटर रूम भी : मदरसे की इमारत भी प्राइवेट स्कूलों से कम नहीं है। इसकी दो मंजिला इमारत में 11 क्लास रूम हैं। कंप्यूटर रूम अलग से है। इसके अलावा दो बड़े हाल हैं, जिनमें एक कॉमन हाल है, जहां सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। 1मदरसा प्रबंधक बताते हैं कि यहां पढ़ाई के नाम पर तो कोई फीस नहीं ली जाती है, लेकिन मेंटेनेंस के लिए पांचवीं क्लास तक के बच्चों से सौ रुपये और जूनियर हाईस्कूल के बच्चों से डेढ़ सौ रुपये महीना लिए जाते हैं।मुस्लेमीन, रामपुर : स्कूल हो या मदरसा, सभी का उद्देश्य ज्ञान बांटना है। फिर ऐसा क्यों दिखाना कि विद्या का मंदिर किसी विशेष धर्म के लोगों का है? विद्या के मंदिर में अमीर-गरीब हर वर्ग के बच्चे होते हैं। उनमें एकरूपता के लिए हर स्कूल में ड्रेस कोड होता है। बच्चे पैंट-शर्ट और टाई लगाकर जाते हैं। यहां सभी धर्म के बच्चे जाते हैं और एक समान दिखते हैं, लेकिन मदरसे में बच्चे सफेद कुर्ता और ऊंचा पायजामा पहनकर जाते हैं। इससे उनकी पहचान धर्म विशेष के रूप में होती है। प्रदेश के एक राज्यमंत्री के मदरसों में डेस कोड लागू करने के बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया है, लेकिन यहां हम बताना चाहते हैं कि रामपुर जनपद में एक मदरसा ऐसा है जहां छात्र बाकायदा पैंट शर्ट और टाई लगाकर आते हैं। यह व्यवस्था आज से नहीं, करीब 15 साल से है। रामपुर स्थित जमीयतुल अंसार मदरसा कुछ अलग है। इस मदरसे के छात्र, हिंदी, उर्दू, गणित और विज्ञान के साथ ही संस्कृत भी पढ़ते हैं। कंप्यूटर शिक्षा भी हासिल कर रहे हैं।1मदरसे की स्थापना 1951 में हाफिज कल्बे हसन अंसारी ने की थी। 1996 में उनकी मौत के बाद उनके बेटे खालिद हसन अंसारी ने मदरसा प्रबंधक के रूप में कमान संभाली। उन्होंने इसे दीनी तालीम के साथ ही दुनियावी तालीम से भी जोड़ा। उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के बाद सभी विषयों की पढ़ाई शुरू कराई। कान्वेंट स्कूलों की तरह मदरसे के बच्चों की ड्रेस भी तैयार कराई। मदरसे के छात्र नीली पैंट और सफेद शर्ट पर नीली टाई के साथ ही बैज और मोनोग्राम भी लगाते हैं।1मदरसे में कंप्यूटर रूम भी : मदरसे की इमारत भी प्राइवेट स्कूलों से कम नहीं है। इसकी दो मंजिला इमारत में 11 क्लास रूम हैं। कंप्यूटर रूम अलग से है। इसके अलावा दो बड़े हाल हैं, जिनमें एक कॉमन हाल है, जहां सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। 1मदरसा प्रबंधक बताते हैं कि यहां पढ़ाई के नाम पर तो कोई फीस नहीं ली जाती है, लेकिन मेंटेनेंस के लिए पांचवीं क्लास तक के बच्चों से सौ रुपये और जूनियर हाईस्कूल के बच्चों से डेढ़ सौ रुपये महीना लिए जाते हैं।उप्र के रामपुर में जमीयतुल अंसार में पढ़ते छात्र। जागरण