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हरदोई : मासूमों की मजबूरी, पढ़ने की उम्र में मजदूरी, कागजों पर अभियान, सड़क पर दिख रहा बचपन

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हरदोई : मासूमों की मजबूरी, पढ़ने की उम्र में मजदूरी, कागजों पर अभियान, सड़क पर दिख रहा बचपन

जागरण संवाददाता, हरदोई: मजबूरी में बच्चे पढ़ने लिखने की उम्र में मजदूरी कर रहे हैं। बच्चों का भविष्य संवारने का दावा करने वाला बेसिक शिक्षा और श्रम विभाग आंख बंद किए बैठा है। विद्यालयों में अध्यापक बस बच्चों का पंजीकरण कराना ही फर्ज समझते हैं और श्रम विभाग को काम करते बच्चे दिखाई नहीं देते।1राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने बच्चों के संरक्षण पर गंभीर है तो निशुल्क अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम में हर बच्चे को शिक्षा जरूरी कर दी है। विद्यालयों में बच्चों के पंजीकरण को स्कूल चलो अभियान चलते हैं। कुछ मजबूरी में और कुछ मनमानी में बच्चों से काम कराते हैं, उन्हें रोकने के लिए श्रम विभाग काम करता है। दोनों विभागों की योजनाएं भी चलती हैं। शासन स्तर से बाल श्रम रोकने के लिए अभियान भी चलाया जाता है। बाल श्रम रोकने के लिए शासन से तो योजना बनाई गई थी कि बच्चों से काम कराने वालों की काउंसिलिंग हो, उनके माता पिता को रोजगार के लिए प्रेरित किया जाए। तो बेसिक शिक्षा विभाग उनसे संपर्क कर बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए प्रेरित करे, लेकिन इन सभी का बच्चों को कोई लाभ नहीं मिल पाता है। देखा जाए तो जिले के करीब 2833 प्राथमिक विद्यालयों में करीब चार लाख 52 हजार बच्चे पंजीकृत हैं, लेकिन कितने बच्चों स्कूल जाते हैं यह विद्यालयों की उपस्थित साफ कर रही है। सुरसा विकास खंड के फर्दापुर निवासी उपेंद्र भैंस लेकर जा रहा था। वैसे पहने तो वह स्कूली ड्रेस था लेकिन पैंट फट गया था और जूता भी फट चुके हैं, न किसी ने पूछा और न ही किसी ने हाल लिया। पिता अवधेश बोले क्या करें। पढ़ाई कराएं तो काम कौन करे। उसे तो बच्चे की कक्षा का भी पता नहीं था। उपेंद्र ही नहीं ऐसे सैकड़ों बच्चे हैं जिन पर किसी की नजर नहीं पड़ती है। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी हेमंत राव का कहना है कि बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने पर जोर है। स्कूल चलो अभियान चल रहा है और जो बच्चा स्कूल नहीं जा रहा उसे स्कूल तक पहुंचाया जाएगा।1अभियान में मात्र 26 बच्चे मिले1होटलों पर बच्चे काम करते हैं। शायद ही ऐसी कोई दुकान या कारखाना हो जहां पर बच्चे काम करते न मिलें पर बाल श्रम रोकने वाले जिम्मेदारों को नहीं दिखाई देते। शासन स्तर से अभियान चलाया गया। जिलाधिकारी के आदेश पर टीम भी बनाई गईं लेकिन मात्र 26 बच्चे काम करते मिले। वह बच्चे कहां हैं और उनके पुनर्वास के लिए क्या प्रयास किया गया यह किसी को पता नहीं है।156 विद्यालयों में पंजीकृत 2056 बच्चे : बाल श्रम करने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए विद्यालय भी संचालित हैं। जिले के 29 विकास खंडों में 56 विद्यालय संचालित हैं और उनमें 2056 बच्चे पंजीकृत हैं। अब बच्चे क्या पढ़ाई करते और उन्हें क्या मिलता है यह कोई देखने वाला नहीं है।भैंस लेकर जाता उपेंद्र ’ जागरण

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