गोरखपुर : पक्षियों को नव जीवन दे रहे स्कूली बच्चे, मानवता की पाठशाला
🔴 मिलती है पशु-पक्षियों की सेवा की सीख, कभी करते थे शिकार, अब रक्षक बन करते हैं देखभाल
उमेश पाठक ’ गोरखपुर1कोई परिषदीय विद्यालय खूबसूरत दिखता हो, वहां समय से कक्षाएं संचालित हो रही हों, तो वह मिसाल बन जाता है। पर, चरगांवा क्षेत्र का प्राथमिक विद्यालय अराजी छत्रधारी पढ़ाई के साथ-साथ दो कदम आगे बढ़कर कुछ और भी कर रहा है। किताबी ज्ञान के साथ यहां के बच्चों को मानवता का पाठ भी पढ़ाया जाता है।
इसका असर है कि यहां के बच्चे घायल, कमजोर पक्षियों की सेवा कर उन्हें नया जीवन दे रहे हैं। पूरी तरह से स्वस्थ हो जाने के बाद ये पक्षी खुले आसमान में विचरने को स्वतंत्र हो जाते हैं। बच्चों के मन में सेवा का यह भाव जगाने वाली सहायक अध्यापक भारती शुक्ला की मानें तो आठ वर्ष शुरू की गयी इस मुहिम में अब तक दो दर्जन से अधिक पक्षियों को नया जीवन मिल चुका है।
कभी शिकार बन जाते थे घायल पक्षी: जंगल अराजी छत्रधारी में पेड़-पौधों की कोई कमी नहीं। इन पेड़-पौधों की उपलब्धता के कारण यहां पक्षियों का जमावड़ा भी खूब होता है। अक्सर देखने को मिलता है कि किसी बड़े पक्षी के हमले में छोटे-छोटे पक्षी घायल हो जाते हैं या कभी-कभी ये बच्चों की गुलेल का शिकार बन जाते थे। क्षेत्र में कुछ लोग इन पक्षियों को पका कर अपना आहार बना लेते थे। यह वह दौर था कि कोई पक्षी घायल हुआ तो उसका जीवित बचना मुश्किल था।12010 से आया बदलाव: भारती शुक्ला ने सन 2010 में इस विद्यालय में सहायक अध्यापक के रूप में सेवा प्रारंभ की। बच्चों के मुंह से पक्षियों की दुर्गति की कहानी सुनना उनके लिए काफी पीड़ादायक था। उन्होंने इस स्थिति को बदलने की ठानी और धीरे-धीरे बच्चों को समझाना शुरू किया। बच्चों को नियमित रूप से शपथ दिलायी जाने लगी कि पक्षियों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, बल्कि उनकी सेवा करेंगे।
इस सीख का बच्चों पर असर हुआ और वे पक्षियों की देखभाल करने लगे। विद्यालय के आसपास यदि कोई पक्षी घायल अवस्था में मिलता है तो भारती अपनी देख-रेख में उसकी सेवा कराती हैं और ठीक हो जाने पर पक्षियों को छोड़ दिया जाता है। बच्चे स्कूल से बाहर रहने पर दूसरों को शिकार से मना तो करते ही हैं, घायल पक्षियों का इलाज भी करते हैं।
छत व दरवाजे पर भी करते हैं दाने-पानी का इंतजाम: बच्चे अपने घर के दरवाजे व छत पर पक्षियों के पीने के लिए पानी व खाने के लिए दाना रखने लगे हैं। विद्यालय में भी पक्षियों के दाने-पानी का इंतजाम करने की तैयारी है।पशु-पक्षियों की रक्षा की शपथ लेते बच्चे।
घायल पक्षियों की देखभाल करते बच्चेऐसे करते हैं सेवा
घायल मिले पक्षियों का घरेलू नुस्खों से इलाज किया जाता है। बहुत छोटे बच्चे हैं तो रूई को दूध में भिगोकर उनकी चोंच में निचोड़ा जाता है। दाना खाने लायक पक्षी हुए तो उन्हें दाना खिलाया जाता है। घोंसला बनाकर उसमें रखा जाता है और उनके सक्षम बनने तक निगरानी की जाती, ताकि कोई और पशु-पक्षी उन्हें नुकसान न पहुंचा पाए।
मेरे पिता मत्स्य विभाग में कार्यरत रहे हैं। बचपन से ही पशु-पक्षियों से नाता रहा है। विद्यालय में आने के बाद घायल पक्षियों के आहार बन जाने या उनका शिकार होने की बात पता चली तो साथी शिक्षकों की सहायता से स्थिति बदलने की सोची। पशु-पक्षियों की देखभाल को लेकर दिलाई जाने वाली शपथ का असर बच्चों कर खूब दिखता है।
- भारती शुक्ला, सहायक अध्यापक,प्राथमिक विद्यालय, जंगल छत्रधारी