इलाहाबाद : सरकार बताए शिक्षकों और अन्य स्टाफ का डाटा तैयार है या नहीं, प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति पर कोर्ट ने मांगी जानकारी, शिक्षकों से बीएलओ का कार्य लेने पर मांगा हलफनामा
विधि संवाददाता, इलाहाबाद । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों के अध्यापकों तथा स्टाफ के स्वीकृत पदों का कंप्यूटरीकृत डाटा उपलब्ध है या नहीं? यदि नहीं, तो कितने समय में डाटा तैयार कर लिया जाएगा? और कितने अध्यापक व स्टाफ शिक्षा सत्र में सेवानिवृत्त होने वाले हैं?1यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने नागेश्वर प्रसाद पीएमवी स्कूल देवरिया की प्रबंध समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि धारा 25 के तहत अध्यापक या स्टाफ का पद रिक्त होते ही स्वत: ही खाली पदों को भरने की व्यवस्था बनाई जा सकती है जिससे कि पद रिक्त होने पर भर्ती विज्ञापन की उच्चाधिकारियों से अनुमति की जरूरत ही न पड़े। इसके अलावा यह भी जानना चाहा है कि अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत शिक्षा सत्र शुरू होते ही अध्यापकों की जरूरत पूरी करने में बाधा पहुंचाने वाले अधिकारियों पर क्या अर्थदंड लगाया जाना चाहिए। जिससे कि शिक्षक व स्टाफ की कमी के चलते बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो। 1कोर्ट ने अगली सुनवाई के दिन नौ जुलाई को प्रमुख सचिव और बीएसए से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। महाधिवक्ता को सरकार का पक्ष रखने के लिए कहा है। 1याची का कहना है कि अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के तहत बच्चों को शिक्षा पाने का अधिकार है। संस्था प्राइमरी तथा जूनियर स्कूल की कक्षाओं का संचालन करती है। केवल चार अध्यापक ही हैं। अतिरिक्त पदों पर भर्ती का विज्ञापन निकालने की अनुमति नहीं दी जा रही है, जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। कोर्ट ने कहा कि छात्र संख्या के आधार पर स्टाफ व अध्यापक होने चाहिए जिससे कि सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ न पड़े। इस पर कोर्ट ने शिक्षकों व स्टाफ के कंप्यूटरीकृत डाटा तैयार करने पर जोर दिया है।विधि संवाददाता, इलाहाबाद1इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों के अध्यापकों तथा स्टाफ के स्वीकृत पदों का कंप्यूटरीकृत डाटा उपलब्ध है या नहीं? यदि नहीं, तो कितने समय में डाटा तैयार कर लिया जाएगा? और कितने अध्यापक व स्टाफ शिक्षा सत्र में सेवानिवृत्त होने वाले हैं?1यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने नागेश्वर प्रसाद पीएमवी स्कूल देवरिया की प्रबंध समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि धारा 25 के तहत अध्यापक या स्टाफ का पद रिक्त होते ही स्वत: ही खाली पदों को भरने की व्यवस्था बनाई जा सकती है जिससे कि पद रिक्त होने पर भर्ती विज्ञापन की उच्चाधिकारियों से अनुमति की जरूरत ही न पड़े। इसके अलावा यह भी जानना चाहा है कि अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत शिक्षा सत्र शुरू होते ही अध्यापकों की जरूरत पूरी करने में बाधा पहुंचाने वाले अधिकारियों पर क्या अर्थदंड लगाया जाना चाहिए। जिससे कि शिक्षक व स्टाफ की कमी के चलते बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो। 1कोर्ट ने अगली सुनवाई के दिन नौ जुलाई को प्रमुख सचिव और बीएसए से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। महाधिवक्ता को सरकार का पक्ष रखने के लिए कहा है। 1याची का कहना है कि अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के तहत बच्चों को शिक्षा पाने का अधिकार है। संस्था प्राइमरी तथा जूनियर स्कूल की कक्षाओं का संचालन करती है। केवल चार अध्यापक ही हैं। अतिरिक्त पदों पर भर्ती का विज्ञापन निकालने की अनुमति नहीं दी जा रही है, जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। कोर्ट ने कहा कि छात्र संख्या के आधार पर स्टाफ व अध्यापक होने चाहिए जिससे कि सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ न पड़े। इस पर कोर्ट ने शिक्षकों व स्टाफ के कंप्यूटरीकृत डाटा तैयार करने पर जोर दिया है।विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा व बेसिक शिक्षा परिषद उप्र से हलफनामा मांगा है। इसमें यह बताने को कहा गया है कि कोर्ट से लगी रोक के बावजूद सहायक अध्यापकों से शिक्षण कार्य के अतिरिक्त बीएलओ (बूथ लेवल अफसर) का कार्य क्यों लिया जा रहा है। कोर्ट ने उप्र बेसिक/प्राथमिक शिक्षक संघ बांदा केस के फैसले का पालन न करने पर स्पष्टीकरण मांगा है। यह भी पूछा है कि इस आदेश को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए गए। क्यों न इसे कोर्ट की अवमानना माना जाए। याचिका की सुनवाई 11 जुलाई को होगी। 1यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने मनोज कुमार व तीन अन्य सहायक अध्यापकों की याचिका पर दिया है। याचिका में कहा गया है कि अध्यापकों से बीएलओ का कार्य लिया जा रहा है, जो अनिवार्य शिक्षा कानून व हाईकोर्ट और शीर्ष कोर्ट के फैसलों का खुला उल्लंघन है। याचियों का कहना है कि उन्हें मतदाता सूची तैयार करने के लिए कार्य में न लगाया जाए, कोर्ट ने प्राथमिक स्कूलों के अध्यापकों से बीएलओ का कार्य लेने में रोक लगा रखी है। कोर्ट की रोक के बावजूद उन्हें जबरन गैर शैक्षिक कार्य के लिए भेजा जा रहा है।