प्राथमिक शिक्षा पर रोजाना प्रवचन, किताबें नदारद
ग्रीष्म अवकाश के दौरान जिम्मेदारों द्वारा दावा किया गया था कि इस बार स्कूल खुलते ही बच्चों के हाथों में पाठ्य-पुस्तिकाएं पहुंच जाएंगी, मगर दावा हवा-हवाई साबित हो रहा...
सिद्धार्थनगर : ग्रीष्म अवकाश के दौरान जिम्मेदारों द्वारा दावा किया गया था कि इस बार स्कूल खुलते ही बच्चों के हाथों में पाठ्य-पुस्तिकाएं पहुंच जाएंगी, मगर दावा हवा-हवाई साबित हो रहा है। जुलाई महीने में 27 दिन का समय बीत गया, परंतु अभी कहीं भी पूरे पाठ्यक्रम की किताबें उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बिन पुस्तक, कैसे पढ़ें और बढ़ेंगे बच्चे ? फिलहाल ये आला अधिकारियों के लिए सोचनीय विषय है।
शासन द्वारा बीते कुछ सत्र से सरकारी शिक्षा को सीबीएसई पैटर्न पर लाने की कवायद तो शुरू कर दी, परंतु तैयारी अभी तक सिफर ही रही है। गत वर्षों से जुलाई के बजाय नया शिक्षा सत्र 1 अप्रैल से शुरू हो जाता है।। नामांकन के लिए स्कूल चलो अभियान रैलियां जोर-शोर के साथ निकाली गई। परंतु तैयारी पर गौर करें तो व्यवस्था शून्य नजर आयी। अप्रैल, मई के बाद ग्रीष्म अवकाश भी बीत गया, मतलब कुल 4 महीने का वक्त खत्म हो रहा है। अभी तक सभी पुस्तकों का कुछ अता-पता नहीं है। कांवेंट स्कूलों की चकाचौंध में वैसे ही परिषदीय विद्यालयों में बच्चों के नामांकन में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जैसे-तैसे जिनका प्रवेश हुआ भी, वह अब स्कूल आकर भी क्या करें, क्योंकि पढ़ने के लिए किताबें उपलब्ध ही नहीं है। परिषदीय स्कूलों में कक्षा 1 से आठ तक बच्चों के अलावा मान्यता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भी कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों में नि:शुल्क पुस्तक वितरण की व्यवस्था है। परंतु इतने दिन बीत जाने के बाद भी एक-दो विषय को छोड़ कर कहीं किताबें उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। विभागीय स्तर पर हिदायत दी गई है कि जब तक किताबें नहीं मिलती है, बच्चों को पुरानी ही पुस्तकें उपलब्ध कराकर उन्हें पढ़ाया जाए, लेकिन छोटे-छोटे बच्चों की पुरानी किताबें जब सुरक्षित ही नहीं बचती हैं तो फिर भला उसे किसी दूसरे बच्चे तक पहुंचाना कहां तक संभव है। मतलब हर जगह किताबों की समस्या है। किताबें हैं नहीं इसलिए बच्चों की संख्या भी स्कूलों में बहुत ही कम दिखाई देती हैं। कहीं बच्चे आते भी हैं तो खेल-कूद कर घर वापस लौट जाते हैं।