प्राथमिक विद्यालयों का हाल, कहीं टहल रही गाय, कहीं गेट पर ही जमा पानी
वाराणसी। करोड़ों खर्च के बाद भी प्राथमिक विद्यालयों के परिवेश में कोई खास सुधार नहीं दिख रहा। गुरुवार को ‘हिन्दुस्तान’ ने नगर के कुछ स्कूलों का जायजा लिया। कहीं विद्यालय में गाय चरते हुए मिली तो कहीं विद्यालय की गेट पर बरसाती पानी जमा था। विद्यार्थियों को यूनिफॉर्म मिल गई है, लेकिन जूता-मोजा का अभी इंतजार है। बैग मिल गया है, लेकिन किताबें गायब हैं। स्कूलों में थोड़ी सुविधाएं बढ़ी। बच्चों को बैठने के लिए फर्नीचर मिल गए। साथ ही व्हाइट बोर्ड लगा दिया गया है।
गिरते-पड़ते पहुंच रहे स्कूल - फोटो (26एमएम-02-03)
लहुराबीर स्थित प्राथमिक विद्यालय में इन दिनों बच्चों को स्कूल पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। वैसे ही बच्चों की संख्या कम है। सिर्फ 52 बच्चे पंजीकृत हैं। कक्षाओं में गिने-चुने बच्चे ही दिखाई दिए। विद्यालय के गेट पर पानी जमा हुआ है। कहीं बच्चे फिसल न जाएं। इसलिए शिक्षिकाएं गेट पर खड़ी होकर उनकों अंदर पहुंचा रही थीं। यहां पर बच्चों को यूनिफॉर्म मिला है, लेकिन जूता-मोजा अभी तक नहीं मिला। लिहाजा कई बच्चे नंगे पैर दिखाई दिए। इन्हें नि:शुल्क बैग भी मिल गया, लेकिन उसमें किताबें नहीं थीं।
पुरानी किताबों से चला रहे काम (फोटो-26एमएम 04)
प्राथमिक विद्यालय पिशाचमोचन की स्थिति और भी दयनीय दिखी। विद्यालय का प्रांगण काफी बड़ा है। विद्यालय भवन भी ठीक-ठाक है। यहां पर कुल 38 बच्चों का ही दाखिला अब तक हुआ है। दो महिला शिक्षामित्र और एक प्रधानाध्यापिका के भरोसे पढ़ाई होती है। प्रधानाध्यापिका किसी काम से बाहर गईं थीं। विद्यालय में दो गाय चर रही थीं। एक शिक्षामित्र ने बताया कि यूनिफॉर्म अभी तक नहीं मिली है। पिछले साल मिला जूता-मोजा खराब हो गया। डेस्क और बेंच पर बच्चे खाली हाथ बैठे हुए थे, क्योंकि उनके पास किताब ही नहीं थी। शिक्षिकाओं का कहना है कि पुरानी किताबों से किसी तरह पढ़ाई हो रही है।
कुछ बदला हुआ दिखा नजारा (फोटो-26एमएम06)
कैलगढ़ स्थित प्राथमिक विद्यालय की स्थिति पहले से काफी सुधरी हुई दिखाई दी। विद्यालय परिसर काफी साफ-सुथरा नजर आया। सभी कमरे चमक रहे थे। कक्षाओं में फर्नीचर था। व्हाइट बोर्ड लगा हुआ था। शिक्षकों ने दावा किया कि 104 बच्चों का दाखिला है। प्रधानाध्यापिका नहीं थीं। दो शिक्षकों ने पूरी व्यवस्था संभाल रखी थी। यहां पर यूनिफॉर्म और बस्ते बंट गए हैं। नई किताबें नहीं आई हैं। बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों को भी उसका इंतजार है।