गरीब बच्चों को साक्षर बना रहे गिरीजेश
आजमगढ़ : शिक्षा नहीं तो जीवन में कुछ नहीं। कुछ जानबूझ कर शिक्षा से किनारा कर लेते है...
आजमगढ़ : शिक्षा नहीं तो जीवन में कुछ नहीं। कुछ जानबूझ कर शिक्षा से किनारा कर लेते हैं तो कुछ मजबूरी में। हालात से विवश शिक्षा से वंचित लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने में जुटे हैं 62 वर्षीय गिरीजेश तिवारी। वह रैदोपुर स्थित किराए के मकान में दर्जनों बच्चों को निश्शुल्क ज्ञान दे रहे हैं।
गिरीजेश तिवारी पुणे से मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब लौटे तो उन्होंने कुछ बच्चों को सड़कों पर भीख मांगते हुए देखा। छोटे-छोटे मासूम बच्चों द्वारा भीख मांगने की घटना ने उन्हें झकझोर दिया। चिकित्सक बनने की मंशा उन्होंने उसी वक्त त्याग दिया। इसके बाद शिक्षा का अलख जगाकर निकल पड़े और पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। किराए के मकान में करीब 70 बच्चे उनसे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उनका कहना है कि जिद ने अगर हर बार इतिहास बनाया है तो फिर से नया इतिहास बनाने की ही उनकी जिद है। हिम्मत व हौसले के साथ यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल खुद कदमों में आ जाती है। 'कर्म ही पूजा है और अच्छा काम पूजा से भी श्रेष्ठ है।' गरीबों की उपेक्षा कर कोई समाज या राष्ट्र विकास नहीं कर सकता। वह किसी बच्चे से कुछ नहीं लेते और इधर-उधर से चंदा इकट्ठा कर बच्चों और अध्यापकों पर खर्च करते हैं। गरीब बच्चों के लिए त्याग दिया पारिवारिक जीवन
गिरीजेश तिवारी के पिता स्व. अनिरूद्ध तिवारी डाक विभाग में हेड पोस्ट मास्टर थे। गिरीजेश तिवारी 1980 में पुणे विश्वविद्यालय से चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई पूरी कर घर लौटे। वहीं से इनका झुकाव समाज की तरफ हो गया। इसके बाद वह कुछ कर गुजरने का मन बनाए और परिवार छोड़कर निकल पड़े। इन्होंने आजमगढ़ में स्थित राहुल सांकृत्यायन स्कूल में कुछ साल पढ़ाया। इसके बाद वह रैदोपुर स्थित एक मकान किराए पर लेकर गरीब बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे कारवां बढ़ता गया बच्चों की संख्या भी बढ़ती गई। शाम तीन बजे से छह बजे तक कक्षा नौ से 12 तक की कक्षाएं चलती हैं। तीन से छह बजे के बीच चार बैच चलाए जाते हैं।