गरीब बच्चों के सपनों में भर रहे शिक्षा का रंग
भाटपाररानी तहसील क्षेत्र के बभनौली गांव निवासी इंद्रेश कुमार एक हौसले का नाम है। वह स्वयं बीए अंतिम वर्ष का छात्र हैं। बावजूद इसके तीन साल से गरीब ब'चों को वह निश्शुल्क शिक्षा प्रदान कर उनके सपनों में शिक्षा का रंग भर रहे हैं।...
देवरिया : भाटपाररानी तहसील क्षेत्र के बभनौली गांव निवासी इंद्रेश कुमार एक हौसले का नाम है। वह स्वयं बीए अंतिम वर्ष का छात्र हैं। बावजूद इसके तीन साल से गरीब बच्चों को वह निश्शुल्क शिक्षा प्रदान कर उनके सपनों में शिक्षा का रंग भर रहे हैं। उनकी कक्षा में नर्सरी से लेकर कक्षा आठ तक के 30 से 50 बच्चे हैं, जो शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। शिक्षा ग्रहण करने वालों में 80 फीसद बच्चे गरीब मजदूरों के हैं। उनके इस कार्य की चारों तरफ चर्चा हो रही है। उनका यह नेक कार्य समाज के लिए नजीर है।
----
ऐसे मिली गरीब बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा
इन्द्रेश हाई स्कूल व इंटरमीडिएट मदन मोहन मालवीय इंटर कालेज भाटपाररानी से करने के बाद मां सुकली देवी सहजौर देवरिया से बीए तृतीय वर्ष के छात्र हैं। दिन में वह स्कूल जाते हैं और शाम को गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। वह रात में व भोर में स्वयं पढ़ते हैं। वह कहते हैं कि शिक्षा से ही विकास संभव है। उन्होंने देखा कि गरीब मजदूरों के बच्चे स्कूल जाने की बजाय पूरा दिन खेल रहे हैं। उनका नाम तो स्कूल में चलता है, लेकिन वे शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं। ऐसे में उन्होंने बच्चों व उनके अभिभावकों से मिलकर उन्हें शिक्षा का मतलब समझाया और प्रतिदिन स्कूल भेजने का वचन लिया। यह शुरुआत कहीं और नहीं स्वयं अपने गांव बभनौली से किया। इसके बाद चनुकी और बांईपार गांव में भी इसका विस्तार किया। बच्चों को अपने यहां दरवाजे पर पढ़ने के लिए बुलाया और उन्हें निश्शुल्क शिक्षा दान शुरू कर दिया। उनकी क्लास हर रोज शाम को चार बजे से शाम सात बजे तक चलती है।
----
शिष्टाचार, संस्कार के साथ स्वच्छता का भी ज्ञान
इंद्रेश बच्चों को शिक्षा देने के साथ ही आधे घंटे का समय बच्चों को शिष्टाचार व संस्कार की शिक्षा देने पर खर्च करते हैं। बड़ों से कैसे बात किया जाता है। भोजन करने से पहले हाथ साबुन से धोकर भोजन करें। गंदगी न फैलाएं, सड़क पर बायी तरफ से चले। हमेशा बड़ों का सम्मान करें। सड़े गले पदार्थ न खाये, साफ सुथरा कपड़े पहने आदि की भी शिक्षा देते हैं। शुरुआत में तो उनकी कक्षा में मात्र तीन बच्चे थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी संख्या लगातार बढ़ती गई। मजदूरों के बच्चों में बभनौली निवासी कक्षा सात के छात्रों में गोलू, मनीषा, रोहित कक्षा सात, कशिश कक्षा पांच, जतिन कक्षा चार, मनीषा कुमारी कक्षा पांच, ¨कजल कक्षा एक, राजू कक्षा तीन, बिट्टू कक्षा दो, कनक कक्षा तीन, आलोक कक्षा चार आदि का नाम शामिल है। छात्रों का भी यहां मन लगता है और वह निर्धारित समय पर अब पढ़ाई के लिए उपस्थित हो जाते हैं। पहले इंद्रेश को बुलाना पड़ता था लेकिन अब उसके उल्टा बच्चे ही उन्हें ढूंढते हुए चले आते हैं।