188 स्कूल, खिलाड़ी 18 भी नहीं
सिद्धार्थनगर : जिले में 188 माध्यमिक विद्यालय हैं। जनपदीय प्रतियोगिता होती है और तीन वर्ष पर मंडलीय प्रतियोगिता। इसके बाद साल भर तक यहां कोई खेल नहीं होता। खेल के नाम पर सिर्फ खेल होता है। यहां स्कूली खेलों का हाल यही है। इसकी बदहाली के लिए सरकारी तंत्र ही जिम्मेदार है। खेल कैलेंडर बनता है तो उसमें आपाधापी ही दिखती है। शायद यही कारण है कि मंडलीय खेल शुरू हो जाने की तिथि तय हो जाती है और जिला स्तरीय खेल आयोजित ही नहीं हो पाते हैं।माध्यमिक विद्यालयों में कुछ के पास खेल मैदान है, पर यहां खानापूरी हो रही है। विद्यालयों में खेल संसाधनों के लिए न तो प्रबंधन तंत्र गंभीर है और न ही संबंधित विभाग। ऐसे में उम्मीद किया जाए कि यहां से बड़े खिलाड़ी निकलें संभव ही नहीं। डेढ़ दशक में स्कूलों अच्छे खिलाड़ी नहीं निकल सकें हैं। डेढ़ दशक से स्थिति यह है कि 188 विद्यालय मिलकर भी 18 नेशनल व स्टेट लेवल के खिलाड़ी नहीं दे सके। स्कूलों से खेल गायब है। डेढ़ दशक से खेल प्रतियोगिताओं के नाम पर सिर्फ खानापूरी होती है। जिले में 188 माध्यमिक विद्यालय हैं, पर कुछ विद्यालयों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश विद्यालयों में निरंतर खेल नहीं होता है। खेल के नाम पर सिर्फ खानापूरी होती है। जिले में स्कूली खेल सिर्फ छह दिनों का मेहमान होता है। जनपदीय खेल प्रतियोगिता हुई तो तीन दिन, मंडलीय खेल प्रतियोगिता हुई तो छह दिन प्रतियोगिताएं चलती हैं। प्रतियोगिता होने के बाद मैदान सन्नाटे में होते हैं, पर इस पर कोई ध्यान नहीं देता है।
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अपने दम पर जूझते हैं खिलाड़ी
जिले में ऐसा नहीं है खिलाड़ी ही नहीं है। खिलाड़ी हैं, पर उन्हें संसाधनों की कमी अखर जाती है। सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता। ऐसे में किसी खिलाड़ी ने निजी स्तर पर प्रयास किया तो वह प्रदेश स्तर पर परचम लहरा दिया। जिला विद्यालय निरीक्षक डा. राजबहादुर मौर्या ने कहा कि यह प्रतियोगिता है। स्कूलों की अभिरुचि है। धीरे-धीरे स्थिति बदल रही है। प्राथमिक से लेकर माध्यमिक तक स्कूल आधुनिक हो रहे हैं। ऐसे में खेल कैसे पीछे रह सकता है। इस पर ध्यान दिया जाता है। धीरे-धीरे परिणाम भी बेहतर मिलेगा।