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गोरखपुर : ‘गायब’ शिक्षकों की सेवा पुस्तिका भी गायब

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गोरखपुर : ‘गायब’ शिक्षकों की सेवा पुस्तिका भी गायब

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : दूसरे का पैन कार्ड और प्रपत्र प्रयोग कर नौकरी करने वाले कुछ शिक्षकों की पहचान हो चुकी है। उनपर कार्यवाही भी हो रही है लेकिन अधिकतर के बारे में विभाग के पास फर्जी नाम और पते के अलावा और कुछ नहीं है। अब तक आए ऐसे 11 मामलों में से केवल एक शिक्षक की सेवा पुस्तिका ही मिल सकी है, शेष की सेवा पुस्तिकाएं अभी तक बीएसए कार्यालय को उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। सेवा पुस्तिका न होने के कारण इन संदिग्ध शिक्षकों की फोटो भी विभाग के पास उपलब्ध नहीं है। सेवा पुस्तिका मिलने में हो रही देरी महत्वपूर्ण विभागीय दस्तावेजों के रख-रखाव पर भी सवाल खड़ा कर रहा है।

दो शिक्षक हो चुके हैं बर्खास्त : दूसरे के नाम पर नौकरी करने वाले दो शिक्षकों को पिछले छह महीने में बर्खास्त किया जा चुका है। छह महीने पहले ब्रह्मपुर के प्राथमिक विद्यालय बेनिजोत खरहरा पर प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यरत रहे अब्दुल रसीद को बर्खास्त किया गया। गोला क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय कोडार बघोर में सहायक अध्यापक के रूप में कार्यरत रहे बालेंद्र कुमार मिश्र को जुलाई में बर्खास्त कर दिया गया।

नहीं दर्ज हुई एफआइआर, न शुरू हुई रिकवरी की प्रक्रिया : जिस नाम से शिक्षक नौकरी कर रहे थे, वह किसी अन्य जगह तैनात दूसरे सरकारी कर्मचारियों के नाम हैं। ऐसी स्थिति में फर्जी नाम से ही बर्खास्तगी हुई है। बर्खास्तगी के बाद इनपर एफआइआर की कार्रवाई नहीं की गई और न ही रिकवरी का ही कोई प्रयास हुआ। वर्षो से नौकरी कर रहे ये शिक्षक लाखों रुपया सरकारी धन हड़प कर फरार हैं। विभाग से जुड़े लोग आरोपित का नाम-पता सही न होने को एफआइआर दर्ज न कराने का बड़ा कारण मानते हैं। उन्हें ढूंढना आसान नहीं होता। 1’>>सामने आ चुके हैं दूसरे का पैन कार्ड इस्तेमाल करने के 11 मामले1’>>एक आरोपित शिक्षक को छोड़कर अन्य किसी की नहीं मिली सेवा पुस्तिका1दूसरे के नाम पर नौकरी करने का मामला गंभीर है। जो मामले सामने आए हैं, उनमें कार्यवाही की जा रही है। दोषी मिलने पर कड़ी कार्रवाई होगी। बर्खास्तगी के बाद उनपर एफआइआर कराकर रिकवरी भी कराई जाएगी ।

भूपेंद्र नारायण सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारीआइटीआर दाखिल किया और खुल गई पोल

जितने शिक्षक पकड़े गए हैं। उन्होंने आइटीआर दाखिल किया है। आइटीआर में पैन का प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति में जब असली व्यक्ति भी आइटीआर दाखिल करने पहुंचता है तो उसे फर्जीवाड़े का पता चलता है। वहीं से पैन इस्तेमाल होने की जगह के बारे में जानकारी होती है और वह शिकायत करने पहुंचता है।

शिक्षा विभाग की भी होती है मिलीभगत

दूसरे के नाम पर यूं ही कोई नौकरी नहीं शुरू कर पाता। सवाल यह है कि आखिर कई वर्षो तक फर्जी प्रमाण पत्रों के सहारे नौकरी कैसे चलती रहती है। कोई शिकायत हुई तो मामला पकड़ा जाता है, अन्यथा सेवानिवृत्ति तक आराम से नौकरी जारी रहती है। शिक्षा विभागीय सूत्रों के अनुसार इस तरह के फर्जीवाड़े में संगठित गिरोह काम करता है, जिसमें शिक्षा विभाग के लोगों की भी मिलीभगत होती है। किसी दूसरे जिले में कार्यरत शिक्षक का प्रपत्र करने वालों को विभागीय लोगों से ही उपलब्ध होते हैं।

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