लखनऊ : बिना जांच अध्यापिका की नियुक्ति कर दी निरस्त, हाईकोर्ट ने लगाई निरस्ती आदेश के क्रियान्वयन पर रोक
विधि संवाददाता लखनऊ। सेवा नियमावली के तहत बिना जांच के किए बेसिक शिक्षा विभाग में तैनात एक सहायक अध्यापिका की नियुक्ति निरस्त किए जाने के बेसिक शिक्षा विभाग के आदेश पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने रोक लगा दी है। इसके साथ ही न्यायालय ने सरकार को जवाब देने के लिए तीन सप्ताह का समय भी दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने कमला वर्मा की याचिका पर दिया। याचिका में कहा गया था कि याची की सहायक अध्यापिका के पद पर 14 नवम्बर 2015 को नियुक्ति हुई। इसके दो साल बाद 15 नवम्बर 2017 को उसे एक कारण बताओ नोटिस दिया गया जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी बीएड की डिग्री फर्जी है। याची सम्बंधित अथॉरिटी के समक्ष पेश हुई और उसने अपना ओरिजिनल डाकुमेंट भी दिखाया। बावजूद इसके याची की नियुक्ति निरस्त कर दी गई। निरस्ती के लिए एसआईटी व यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट को आधार बनाया गया लेकिन याची को ये दोनों रिपोर्ट नहीं सौंपी गईं। वहीं याचिका का विरोध करते हुए, सरकारी वकील ने दलील दी कि याची ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नियुक्ति पत्र हासिल किया था लिहाजा नियुक्ति निरस्त करने का आदेश गैर विधिपूर्ण नहीं कहा जा सकता। न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद पाया कि उक्त कार्यवाही के दौरान उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी (अनुशासन व अपील) नियमावली का पालन नहीं किया गया। मात्र एक कारण बताओ नोटिस जारी कर के 15 नवम्बर 2017 का आदेश पारित कर दिया गया। याची द्वारा पेश किए गए ओरिजिनल डाकुमेंट पर भी विचार नहीं किया गया। इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने 15 नवम्बर के आदेश के क्रियान्वयन पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी।