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बस्ती : स्कूलों में खेलकूद की सुविधा नगण्य, जनपद फिसड्डी

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स्कूलों में खेलकूद की सुविधा नगण्य, जनपद फिसड्डी

खेलकूद की नर्सरी कहे जाने वाले माध्यमिक विद्यालयों में खेलकूद की गतिविधियां शून्य हैं।...

बस्ती : खेलकूद की नर्सरी कहे जाने वाले माध्यमिक विद्यालयों में खेलकूद की गतिविधियां शून्य हैं। खेल मैदान तो हैं पर, स्कूलों से खेल गायब है, इसका मूल कारण खेल शिक्षक और जिम्मेदार अधिकारियों की रुचि न लेना है। स्कूल में तैनात शिक्षक भी खेल प्रतियोगिताओं के बजाए पीटी तक सीमित रह जाते हैं। स्कूलों में खेलकूद प्रतियोगिता लगभग शून्य है। यही वजह है कि स्कूली खेल प्रतियोगिताओं में बस्ती का नाम काफी नीचे है।

जनपद के गिने-चुने स्कूलों में वार्षिक खेल का आयोजन होता है। इसी दिन यहां के होनहार खिलाड़ी अगर अपनी प्रतिभाग दिखा सकते हैं तो ठीक, अन्यथा सालभर प्रतियोगिताएं होने का रास्ता देखते रहते हैं, यहां तक कि खेल विभाग पत्र देकर आयोजनों में शामिल करने के लिए खिलाड़ी की मांग करता है तो भी स्कूल इस पर ध्यान नहीं देते हैं। जनपद के तकरीबन 380 माध्यमिक विद्यालयों में से अधिकांश के खेल मैदान बदहाल हैं। खेल उपकरण उपलब्ध न होने से खेल का भी बुरा हाल है। स्कूल में छात्र-छात्राएं यदि खेल से जुड़ना भी चाहें तो मैदान की हालत और किट की अनुपलब्धता उन्हें आगे नहीं बढ़ने देती। सरकारी स्कूलों में खेलकूद की बाध्यता न रहे तो वार्षिक खेल भी न हों। प्रति माह बच्चों से खेल के नाम पर फीस की वसूली का भी खेल होता है।

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ये है विभिन्न खेलों में फीस : जनपद के 20 सरकारी स्कूल में इंटरमीडिएट व हाईस्कूल के बच्चों से खेल के नाम पर प्रति माह 5 रुपये की वसूली होती है। इस फीस में कबड्डी, फुटबाल, व्यायाम, पीटी, हाकी, दौड़, कैरम, बैड¨मटन आदि खेल शामिल हैं।

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मान्यता की शर्तो में खेल मैदान अनिवार्य

वित्तविहीन माध्यमिक विद्यालयों की मान्यता तभी मिलती है जब उनके पास मानक के मुताबिक खेल मैदान हो। 290 वित्तविहीन माध्यमिक विद्यालय हैं, खेल मैदान के नाम पर कम ही विद्यालय इस मानक पर खरे उतरे हैं, बावजूद इसके उनको मान्यता मिल गई है।

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यह है खेल मैदान और संसाधनों की स्थिति

गोटवा स्थित किसान इंटर कालेज मरहा कटया बस्ती में खेल मैदान तो है पर, खेल उपकरण नहीं है। खेल उपकरण आलमारी में कैद हैं। मैदान पर झाड़ियां उग आईं हैं। खेल शिक्षक इंद्र बहादुर ¨सह कहते हैं कि खेल शुल्क 5 रुपये प्रतिमाह है। बच्चों को समय-समय पर खेलकूद की शिक्षा दी जाती है। प्रतियोगिताएं भी कराई जाती है, इन दिनों बारिश के चलते खेल नहीं हो रहा है। कबड्डी, फुटबाल, व्यायाम, पीटी सिखाई जाती है। हंस राज लाल इंटर कालेज में खेल मैदान है, किट कहां हैं पता नहीं। यहां के शिक्षकों ने बताया कि प्रतियोगिताएं होती है। इसमें प्रतिभाग करने के लिए बच्चों को प्रशिक्षण दिया जाता है। कुछ उपकरण की कमी जरूर है, जिसे पूरा कर खेलकूद की गतिविधियों और मजबूत बनाया जाएगा। खेल शिक्षक अरुणेश चौधरी ने बताया कि कबड्डी, फुटबाल, हाकी, दौड़, कूद होती है।

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नर्सरी ही कमजोर तो कहां से निकले खिलाड़ी

- खेलकूद सीखने की नर्सरी वैसे तो स्कूल का मैदान ही है लेकिन, न तो संसाधन ही मुहैया हो पाते हैं न ही उतना प्रशिक्षण मिल पाता है, ऐसे में अच्छे खिलाड़ी नहीं निकल पाते। जागरूकता का भी अभाव है। खेल शुल्क तो ले लिया जाता है पर, वैसी प्रतियोगिताएं नहीं होतीं, जिससे की स्कूली खिलाड़ी चमक सकें। स्कूलों में खेल की नर्सरी को मजबूत बनाना होगा। स्कूलों में सुधार की जरूरत है।

विकास उपाध्याय, हैंडबाल खिलाड़ी

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खेलकूद की प्रारंभिक शिक्षा स्कूल से मिलती है। यहां खेल की बारीकियां अगर छात्र समय से सीख जाएं तो वह आगे चलकर बेहतर खिलाड़ी साबित हो सकते हैं, पर गांव के स्कूल में वह चीजें आजतक उपलब्ध नहीं कराई जा सकीं। यदि खेल मैदान, किट की व्यवस्था है तो खेल शिक्षकों को खेल के प्रति छात्रों को प्रेरित करना चाहिए।ताकि छात्र खेल से जुड़ें और भविष्य बना सकें।

शिवेंद्र ¨सह, क्रिकेट खिलाड़ी।

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