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वाराणसी : संसाधन और वेतन तो बढ़ा मगर गुणवत्ता नहीं

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वाराणसी : संसाधन और वेतन तो बढ़ा मगर गुणवत्ता नहीं


हिन्दुस्तान टीम,वाराणसी । आजादी के समय शिक्षण संस्थाओं में संसाधनों का अभाव था, लेकिन वहां से सीवी रमन और मेघनाद साहा जैसे विद्वान निकले। आज संसाधन और वेतन बढ़ गया, मगर नौवीं का छात्र तीसरी कक्षा के सवाल नहीं हल कर पा रहा है। यह चिंता का विषय है। यह बात राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कही। वे सोमवार को यूपी कालेज में संस्थापक राजर्षि उदय प्रताप सिंह जूदेव की 168वीं जयंती समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।


उन्होंने कहा कि देश की पहचान श्रेष्ठ शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों से होती है। अमेरिका का हवाला देते कहा कि वहां की शिक्षण संस्थाएं उसकी ताकत है। दुनिया में जो भी तकनीकी बदलाव हो रहे हैं उसका केंद्र सिलिकॉन वैली है। आज व्यक्ति की पहचान उसके परिवार या अर्जित धन से नहीं होती है। शिक्षा यशगाथा बढ़ाने का माध्यम है।

कॉपी करने वाले नहीं, इनोवेटिव छात्र चाहिए

उपसभापति ने कहा कि हमें आत्ममू्ल्यांकन करना चाहिए। यह देखना चाहिए कि राजर्षि के जिन सपनों को लेकर कालेज की स्थापना की, उसे कितना साकार कर पाए हैं। दुनिया तेजी से बदल रही है। पांच साल बाद की दुनिया आज जैसी नहीं होगी। ज्ञान आधारित समाज का निर्माण हो रहा है। चौथी औद्योगिक क्रांति सूचना क्रांति के रूप में आएगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित होगी। ऐसे में इनोवेशन को बढ़ावा देना होगा। हमें ऐसे छात्र नहीं चाहिए जो सिर्फ कॉपी करते हों। परीक्षा में बढ़ती नकल की प्रवृति को भी उन्होंने खतरनाक बनाया। उन्होंने कहा नालंदा और तक्षशिला जैसे प्राचीन शिक्षण सस्थाओं से गौरव हासिल करते हुए नए जमाने की आवश्यकता के अनुसार विद्यार्थी तैयार करने होंगे। उन्होंने इस संदर्भ में कई उदाहण दिए। प्रसंग भी सुनाए।

जीवन में अनुशासन का महत्व

उन्होंने अनुशासन के महत्व पर जोर दिया। कहा कि व्यक्तिगत जीवन से सार्वजनिक जीवन तक में अनुशासन का बड़ा महत्व है। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो किसी भी प्रकार के भेदभाव को दूर करे। उन्होंने कहा कि यह सोचना होगा कि राजर्षि की व्यापक सोच के प्रति हम कितना फर्ज निभा पा रहे हैं।

चुनौतियों का मुकाबला करती हैं शिक्षण संस्थाएं

विशिष्ट अतिथि और भदोही के सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने कहा कि शिक्षण संस्थानों की स्थापना उस काल की चुनौतियों से मुकाबले के लिए होती है। जेएनयू का जिक्र करते हुए कहा कि वहां जो नारे लग रहे हैं उसका मुकाबला यूपी कालेज जैसी संस्थाएं कर सकती हैं।

काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो.टीएन सिंह ने कहा कि यह उनके लिए गर्व की बात है कि यूपी कालेज जैसी संस्था उनके विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। कालेज की सभी समस्याओं का निदान होगा। एमएलसी चेतनारायण सिंह, प्रबंध समिति के सचिव यूएन सिन्हा ने भी विचार व्यक्त किया। अध्यक्षता न्यायमूर्ति डीपी सिंह ने की। स्वागत संयुक्त सचिव के.पी.सिंह ने किया। धन्यवाद प्राचार्य डॉ.विजय बहादुर सिंह और संचालन अरविंद सिंह ने किया।

आज भी याद है कालेज का जमाना

48 साल बाद अपने कालेज में आने पर राज्यसभा के उपसभापति भाव-विभोर थे। उन्होंने बताया कि 1970 में यहां पर दाखिला लिया था। छात्रावास में रहते थे। शिक्षक के रूप में तत्कालीन प्रधानाचार्य राजनाथ सिंह, परमानंद सिंह, रामबहादुर सिंह आदि आज भी स्मरणीय हैं। कॉलेज ने जो अनुशासन और संस्कार दिया, उसकी बदौलत आज वह इस मुकाम पर है। उन्होंने बताया कि 1971 में उन्हें कालेज में आयोजित प्रतियोगिता के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी ने पुरस्कृत किया था।

छात्राओं ने प्रस्तुत किए सांस्कृतिक कार्यक्रम

इस मौके पर छात्राओं ने कृष्ण लीला और कैसे खेले जाइब सावन में कजरिया गीत प्रस्तुत किया। याचना सिंह, सौरभ राय, रतन सिंह और सोनम ने राजर्षि के जीवन पर आधारित भाषण दिया।

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