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इलाहाबाद : शासनादेश ने कराया शिक्षक भर्ती का बंटाधार, 68500 सहायक अध्यापक भर्ती, नियम सही न होने से बार-बार हुए बदलाव, जांच समिति की भी अनदेखी, कक्ष निरीक्षकों की अनदेखी से फेल अभ्यर्थी उत्तीर्ण

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इलाहाबाद : शासनादेश ने कराया शिक्षक भर्ती का बंटाधार, 68500 सहायक अध्यापक भर्ती, नियम सही न होने से बार-बार हुए बदलाव, जांच समिति की भी अनदेखी, कक्ष निरीक्षकों की अनदेखी से फेल अभ्यर्थी उत्तीर्ण

धर्मेश अवस्थी’ इलाहाबाद । परिषदीय स्कूलों की 68500 सहायक अध्यापक भर्ती की लिखित परीक्षा के परिणाम पर गंभीर आरोप लगे। प्रदेश सरकार व परीक्षा संस्था दोनों कठघरे में आईं, हालांकि जिस तरह का हंगामा बरपा वैसी खामियां जांच समिति की रिपोर्ट में उजागर नहीं हुई हैं।

दरअसल, इस भर्ती में ‘धमाके’ करने का पूरा ‘बारूद’ परीक्षा संस्था ने ही मुहैया कराया था, क्योंकि भर्ती का शासनादेश ही ऐसा बना कि जिसमें खामियों की भरमार रही। इसके बाद भी जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस पक्ष की पूरी तरह से अनदेखी की है। योगी सरकार की पहली और सबसे बड़ी शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही विवाद शुरू हुए, जो लगातार बढ़ते गए और अब भी खत्म नहीं हुए हैं।

उत्तीर्ण प्रतिशत से चयन प्रभावित : शिक्षक भर्ती के 68500 पदों के लिए 107869 अभ्यर्थी लिखित परीक्षा में बैठे। शासनादेश में सामान्य व ओबीसी 45 व एससी-एसटी का 40 फीसद उत्तीर्ण प्रतिशत तय हुआ। कोर्ट ने इसे नहीं माना, रिजल्ट शासनादेश के अनुरूप आया। इसमें 41556 अभ्यर्थी ही सफल हो सके, जैसे-तैसे दो चयन सूची से करीब 40 हजार पद भरे गए। यदि उत्तीर्ण प्रतिशत की जगह लिखित परीक्षा की मेरिट पर चयन होता तो सभी पद भर जाते और इन दिनों 33 व 30 फीसदी के लिए आंदोलन भी नहीं होता।

मूल्यांकन का मानक नहीं बना: परीक्षा की पारदर्शिता के लिए पहली बार सब्जेक्टिव इम्तिहान में उत्तरकुंजी देने व कार्बन कॉपी मुहैया कराने तक के नियम बने लेकिन, उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का कोई नियम नहीं था कि आखिर एक शिक्षक कितनी कॉपियां जांचेगा।

स्क्रूटनी व दोबारा जांच का अवसर नहीं : शासनादेश में कॉपियों की स्क्रूटनी या फिर उनकी दोबारा जांच करने का प्रावधान नहीं है। शासन ने ही इसे तोड़कर पहले कॉपियों की स्क्रूटनी कराई और अब पुनमरूल्यांकन कराने की तैयारी में है।

वरिष्ठ की जगह कनिष्ठों पर कार्रवाई : जांच समिति ने भर्ती के शासनादेश का संज्ञान नहीं लिया कि आखिर खामियों के मूल में कौन है।

वरिष्ठ अफसरों को नजरंदाज कर कनिष्ठ अफसर व कर्मचारियों को आरोपित किया गया है, जबकि हाल में हाईकोर्ट ने परिषदीय शिक्षकों के समायोजन के लिए जारी शासनादेश पर गंभीर आपत्ति की है।

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