प्रयागराज : टीजीटी-पीजीटी शिक्षक भर्ती में मानवीय भूल के नाम पर बदलती रही मेरिट, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड उप्र में तमाम विषयों के रिजल्ट बदले
प्रशिक्षित स्नातक वर्ष 2011 हंिदूी विषय की लिखित परीक्षा व साक्षात्कार के बाद चार अगस्त 2018 को अंतिम परिणाम जारी हुआ। दोनों परीक्षाएं उत्तीर्ण कर चुके पंकज कुमार व तिलकराम को जब कालेज आवंटन करने की बारी आई तब उनकी अर्हता जांची गई। इसमें सामने आया कि वे इस पद के योग्य ही नहीं हैं। दोनों को अंतिम समय में बाहर कर दिया गया।
ये हाल है प्रदेश के अशासकीय माध्यमिक कालेजों के लिए प्रवक्ता, स्नातक शिक्षक व प्रधानाचार्यो का चयन करने वाले माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड उप्र का। प्रतियोगी परीक्षाओं में आम तौर पर उन अभ्यर्थियों को बाहर का रास्ता का दिखा जाता है, जो छिटपुट गलतियां करते हैं। प्रश्नों का जवाब लिखने में वर्तनी तक की गलतियों पर अंक कट जाते हैं ऐसे अभ्यर्थियों को शीर्ष कोर्ट तक ने कभी राहत नहीं दी है। वहीं, शिक्षा विभाग के अफसर बड़ी गलतियों को मानवीय भूल का नाम देकर मेरिट से लेकर रिजल्ट तक बदल रहे हैं। इसके बाद भी महकमा यह मानने को तैयार नहीं होता कि उससे चयन में चूक हुई है, बल्कि मानवीय भूल सुधारने को पारदर्शिता का नाम देकर उसे सही ठहराने का पूरा जतन हो रहा है।
चयन बोर्ड में इधर लगातार एक नहीं कई प्रकरण ऐसे सामने आए हैं, जब सचिव ने उत्तर कुंजी, लिखित परीक्षा, साक्षात्कार के बाद अंतिम रिजल्ट तक बदल दिया है। इसका शासन भी संज्ञान नहीं ले रहा है कि आखिर चयन में इतनी मानवीय भूल क्यों हो रही है, जबकि रिजल्ट जारी करने में महीनों का वक्त लिया जा रहा है। चयन बोर्ड ने टीजीटी वर्ष 2011 हंिदूी विषय ही नहीं विज्ञान विषय में भी सत्य प्रकाश व अमरदीप मौर्य का चयन अनुसूचित जाति वर्ग में कर दिया, जबकि दोनों अभ्यर्थी ओबीसी वर्ग के हैं और ओएमआर शीट से लेकर सारे प्रपत्रों में यही दर्ज था। बाद में इस गलती को भी सुधारा गया। ऐसे ही बालक वर्ग के लिए आवेदन करने वाली ममता सक्सेना का चयन बालिका वर्ग में कर दिया, यह सुधार भी कालेज आवंटन के समय ही हो सका है। टीजीटी वर्ष 2011 संस्कृत विषय का साक्षात्कार देने वाली संगीता चौरसिया को अनुपस्थित दिखा गया, उसके अंक दूसरे अभ्यर्थी के खाते में दर्ज हो गए। जब उसने प्रत्यावेदन दिया तो चयन बोर्ड को यह भी मानवीय भूल लगा और ओबीसी बालिका संवर्ग की मेरिट बदलनी पड़ी है। चयन बोर्ड के अध्यक्ष से लेकर अफसर तक इन मामलों में बोलने को भी तैयार नहीं हैं।