वाह जनाब! पगार 64 रुपये..पेंशन 27 हजार
जहीर हसन, बागपत: लीजिए जनाब..64 रुपये वेतन पर 27 हजार रुपये पेंशन। जी हां! आजकल बीएसए दफ्...
जहीर हसन, बागपत:
लीजिए जनाब..64 रुपये वेतन पर 27 हजार रुपये पेंशन। जी हां! आजकल बीएसए दफ्तर में यही चल रहा है। रिटायर्ड टीचर 7वें वेतन आयोग की संस्तुति के आधार पेंशन रिवाइज कराने उमड़ रहे हैं। पेंशन रिवाइज के दौरान रोचक जानकारी सामने आ रही है। जैसे 50 रुपये महीना वेतन पर नियुक्त टीचर रिटायर्ड होकर अब 34 हजार रुपये पेंशन पा रहे हैं। आइए! पलटते हैं फाइलों के पन्ना..
¨जदगी के 75 बसंत देख चुके खेकड़ा निवासी चंद्रबल शर्मा बीएसए दफ्तर के लेखा अनुभाग में पेंशन की फाइल के पन्ना पलटने और कैलकुलेटर से हिसाब-किताब जोड़ने में मशगूल हैं। पूछते ही बोले कि 10वीं पास करते ही उन्हें साल 1964 में प्राथमिक स्कूल में सहायक अध्यापक पद पर 64 रुपये महीना वेतन पर नियुक्त मिली। वर्ष 2007 में रिटायर्ड हुए और अब 27 हजार रुपये पेंशन मिलती है।..फिर शून्य में ताकते हुए बोले कि क्या कहें? आज तो महंगाई इतनी ज्यादा है कि पेंशन के पैसों से फूटी कौड़ी नहीं बचती है।
पहले हम 64 रुपये की पगार से हर माह 40-50 रुपये बचा लेते थे। अब पैसे की कोई कीमत ही नहीं है शायद। जैसे रुपये की कीमत में गिरावट आई है, वैसे ही शिक्षकों और बच्चों के बीच रिश्ता घटा है। पहले हम स्कूल समय के बाद बच्चों को मुफ्त पढ़ाते थे, लेकिन अब ट्यूशन चलता है। पहले समाज चंदा जुटाकर स्कूल बनाता था, लेकिन अब सरकार से बजट मिलने का इंतजार करते हैं। फिर घूम फिरकर वेतन की बात करने लगते हैं। पहले स्कूल में हेडमास्टरजी नकद वेतन बांटते थे। साल 1972 में स्कूल जिला पंचायत से बेसिक शिक्षा परिषद के अंडर में आने के बाद शिक्षकों को वेतन बांटने का काम बीडीओ करते थे।
चंद्रबल शर्मा ही नहीं और भी बहुत से ऐसे टीचर हैं जो मामूली वेतन से करियर शुरू कर आज मोटी पेंशन पाते हैं। जैसे खेकड़ा निवासी भगवती प्रसाद साल 1963 में 50 रुपये से नियुक्त होकर साल 1998 में रिटायर्ड हुए।..अब 19350 रुपये पेंशन पाते हैं। वहीं शंभूनाथ गुप्ता साल 1958 में सहायक अध्यापक पद पर 66 रुपये से नियुक्त होकर अब 21 हजार रुपये से ज्यादा पेंशन पा रहे हैं। हिलवाड़ी गांव निवासी मलखान खां भी साल 1965 में मात्र 50 रुपये माह के वेतन पर नियुक्त हुए थे, लेकिन अब 19 हजार रुपये से ज्यादा पेंशन लेते हैं। कई रिटायर्ड टीचर कहते सुने गए कि पहले रुपया देखने को नहीं मिलता था। एक रुपये का सवा शेर यानी सवा किलो देशी घी आता था। वहीं पेंशन रिवाइज के दौरान साल 2005 के बाद नियुक्त शिक्षक उनकी पेंशन राशि सुनकर यह कहे बिना नहीं रुकते कि काश! हमें भी पेंशन का लाभ मिलता..।