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बस्ती : पढ़ाई नहीं के बराबर और परीक्षा बेहद कठिन

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पढ़ाई नहीं के बराबर और परीक्षा बेहद कठिन


साहब यह भी देखिए! पढ़ाई अक्षर नहीं और परीक्षा बेहद कठिन। कहां से अव्वल आएंगे विद्यार्थी। उत्तीर्ण का अंक पत्र मिलने की उम्मीद किस बूते पर की जाए। जब गुरुजी आए ही नहीं। गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे प्रमुख विषयों की कक्षाएं कई-कई दिन चली ही नहीं।...

बस्ती : साहब यह भी देखिए! पढ़ाई अक्षर नहीं और परीक्षा बेहद कठिन। कहां से अव्वल आएंगे विद्यार्थी। उत्तीर्ण का अंक पत्र मिलने की उम्मीद किस बूते पर की जाए। जब गुरुजी आए ही नहीं। गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे प्रमुख विषयों की कक्षाएं कई-कई दिन चली ही नहीं। जब भी स्कूल गए शिक्षकों के सन्नाटे में उछल कूद के सिवाय किताब के पन्ने नहीं खुल पाए। अब कड़े पहरे में परीक्षा के दिन नजदीक आ गए हैं। जहां कैमरे की नजर में बैठना होगा। आवाज भी टेप होगी। सिर हिलाए तो गुरुजनों की डांट-फटकार अलग से। यह हाल है माध्यमिक शिक्षा परिषद के हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट विद्यार्थियों की। शासन ने नकल विहीन परीक्षा कराने में काफी हद तक सफलता प्राप्त कर ली है। विद्यालयों में पठन-पाठन का माहौल इस सत्र में भी नहीं लौट पाया। इसकी मुख्य वजह शिक्षकों की बेहद कमी है। दो दशक पहले तक जिन स्कूलों की पढ़ाई के मामले में बेहतर छवि वाले जीआइसी, खैर इंडस्ट्रियल इंटर कालेज, जीआरएस, जीजीआइसी, केआइसी भी वीरान हो गए हैं। छात्र संख्या घटकर आधी हो गई। इस बार वैकल्पिक शिक्षक नियुक्त करने की पहल तो हुई लेकिन सफलता नहीं मिली। सेवा निवृत्त शिक्षकों का चयन होना था। बड़ी मुश्किल से 50 की संख्या में यह शिक्षक मिल पाए। गनीमत तब होती जब नए लोग योग्यता और दक्षता के अनुसार वैकल्पिक शिक्षक के रूप में नियुक्त किए जाते। जनपद में 6 राजकीय इंटर कालेज और 16 राजकीय हाईस्कूल समेत 22 विद्यालय संचालित हैं। अधिकांश स्कूल में दहाई से भी कम शिक्षक रह गए हैं। किसी भी राजकीय विद्यालय में प्रधानाचार्य नहीं हैं। सहायक अध्यापक के सृजित 196 पद के सापेक्ष केवल 56 की तैनाती है। 140 पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं। 68 के सापेक्ष 56 प्रवक्ता के पद रिक्त चल रहे हैं। यही हाल 70 सहायता प्राप्त स्कूलों का भी है। सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन स्कूलों में पढ़ाई का स्तर का क्या होगा।

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वित्तविहीन की दशा फिर भी ठीक

माध्यमिक शिक्षा परिषद के वित्तविहीन विद्यालयों की दशा फिर भी ठीक है। यहां अधिक शुल्क जरूर वसूले जा रहे हैं लेकिन पढ़ाई का स्तर बेहतर है। विद्यालय प्रबंधन निजी व्यवस्था से सुसज्जित भवन, नियमित कक्षाएं, विद्यार्थियों के लिए आवागमन की सुविधा आदि का इंतजाम कर रहे हैं। अब तो परिषद भी इन्हीं स्कूलों पर निर्भर होता दिख रहा है। सर्वाधिक परीक्षा केंद्र वित्तविहीन विद्यालय ही बनाए जा रहे हैं। अब यह दीगर बात है कि आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे यहां दाखिला न लेकर सरकारी स्कूलों की शरण में हैं। जिससे उनके भविष्य पर सवालिया निशान लगा हुआ है।

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एक नजर इधर भी

जनपद में माध्यमिक स्कूल- 382

राजकीय- 22

सहायता प्राप्त- 70

वित्तविहीन- 290

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कुल बोर्ड परीक्षार्थी- 80900

हाईस्कूल- संस्थागत- 45130, व्यक्तिगत- 111

इंटरमीडिएट- संस्थागत- 34880, व्यक्तिगत- 779

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