शिक्षा का उजियारा, घर के दर-ओ-दीवार पर रोशन बेटी पढ़ाओ का संदेश
प्रमोद सिंह ’ हाथरस । हाथरस के एक शिक्षक दंपती ने शिक्षा का उजियारा फैलाने के लिए अपना घर ही सामाजिक संदेशों से पुतवा लिया। ज्यादा जोर बेटियों की पढ़ाई को लेकर है। इनके दरो-दीवार पर संत गाडगे का वह संदेश भी लिखा है, जो कहता है- यदि घर में पैसों की तंगी है तो रोटी हाथ पर धरकर खाओ, टूटे-फूटे घर में रहो, पत्नी के लिए कम दामों की साड़ी लाओ, मगर बच्चों को पढ़ाए बिना मत मानो..।
डॉ. भीमराव आंबेडकर का यह संदेश भी प्रमुखता से उकेरा गया है, जो बताता है कि शिक्षा उस शेरनी के दूध की तरह है कि जो इसे पीता है, गुर्राना आ जाता है..। दंपती की इस पहल ने अनुसूचित जाति बहुल गांव का न सिर्फ वैचारिक माहौल बदला है, बल्कि आसपास तक उसका असर दिख रहा है। शिक्षा विभाग के अफसर भी इनकी पहल के कायल हैं।
हाथरस शहर से सटे गांव अलगर्जी में शिक्षा और सामाजिक संदेशों का यह दीया रोशन है। इसे प्रज्जवलित किया है, शिक्षक दंपती पतिराम सिंह व नीलम सिंह ने। दोनों ही हाथरस ब्लॉक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय रतनगढ़ी में पदस्थ हैं। 2923 की आबादी वाले गांव नगला अलगर्जी में अनुसूचित जाति के लोग ही अधिक रहते हैं। इनमें ज्यादातर दिहाड़ी या खेतिहर मजदूर हैं। कुछ बच्चों को साथ काम पर ले जाते हैं, कुछ गांव में ही खेलते-कूदते रहते। इस माहौल को बदलने के लिए दंपती ने डेढ़ साल पहले सोचा कि क्यों न घर को ही स्कूल जैसा बना दिया जाए। जो देखेगा, कुछ तो सीखेगा। उन्होंने घर की बाहरी दीवारों पर वॉल पेंटिंग कराई और डॉ. आंबेडकर, संत गाडगे, छत्रपति शाहूजी महाराज आदि के विचारों को लिखवाया। गांव में कक्षा पांच तक का विद्यालय है, जहां पिछले साल 160 बच्चे पढ़ते थे। इस साल 186 पढ़ रहे हैं। शिक्षक दंपती ने पांचवीं से ऊपर के बच्चों का पड़ोसी विद्यालयों में दाखिला कराने में मदद की है।
गांव में छह से 14 वर्ष तक के कुल 425 बच्चों में से ज्यादातर अब स्कूल जा रहे हैं। इसकी तस्दीक गांव कुसुमा देवी भी करती हैं। बताती हैं, मेरी बेटी सिलाई-कढ़ाई करती थी। शिक्षक दंपती ने समझाया तो बेटी को पढ़ाना शुरूकर दिया है। बेटी कक्षा आठ में रामबाग इंटर कॉलेज में पढ़ रही है। गांव के प्राइमरी स्कूल की प्रधानाध्यापिका नेहा सक्सेना कहती हैं, शिक्षक दंपती के प्रयास से लोग जागरूक हो रहे है। छात्र नामांकन भी बढ़ा है। ग्राम प्रधान सर्वेश देवी भी बदले माहौल का श्रेय शिक्षक दंपती को देती हैं। बताती हैं, अब बच्चे खेलने के साथ पढ़ाई पर भी ध्यान देते हैं। जल्दी ही पूर्व माध्यमिक विद्यालय की स्थापना के लिए अधिकारियों से मिलूंगी। शिक्षक दंपती की इस पहल की चौतरफा तारीफ हो रही है। जो लोग शिक्षक के घर या गांव में आते हैं, एक सीख लेकर लौटते हैं।