प्रयागराज : भर्ती घोटाले की जांच में सीबीआइ पड़ी सुस्त
राब्यू, प्रयागराज : प्रदेश में सबसे बड़े भर्ती घोटाले को सीबीआइ जांच के जरिये उजागर कर बड़ा लाभ लेने की प्रदेश सरकार की मंशा खटाई में पड़ गई है। उप्र लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) से पांच साल के दौरान पीसीएस सहित विभिन्न सरकारी पदों पर हुए हजारों चयन में गड़बड़ी के सुराग लगाने के बाद सीबीआइ ने अघोषित रूप से हाथ खींच लिए हैं। इससे चयन में अनुचित लाभ पाने वाले ठाठ से नौकरी कर रहे हैं।1सीबीआइ ने 25 जनवरी को लखनऊ में पीई दर्ज कर 31 जनवरी, 2018 से यूपीपीएससी में भर्तियों की जांच शुरू कर दी थी। इससे हजारों अभ्यर्थियों को अपना छिना हुआ अधिकार वापस मिलने की उम्मीद जगी थी। सीबीआइ ने पीसीएस 2015 समेत चार बड़ी भर्तियों में गड़बड़ी के तमाम साक्ष्य जुटा लिए और तमाम चयनितों से पूछताछ के बाद पांच मई को अज्ञात लोगों के खिलाफ ‘आरएसी सी वन’, के रूप में प्राथमिकी दर्ज कर शीघ्र ही कोई बड़ा कदम उठाने की अपनी मंशा भी जाहिर कर दी। लेकिन, मई बीतते ही सीबीआइ के सभी आला अधिकारी दिल्ली मुख्यालय लौट गए। अब भर्तियों की जांच के प्रति सीबीआइ पूरी तरह से मौन है। यूपीपीएससी से परीक्षाओं संबंधी रिकॉर्ड लेकर सील किए जाने के बाद जांच पर अघोषित रूप से रोक लगी है। शीर्ष स्तर पर भी सीबीआइ के इस भर्ती घोटाले से हाथ खींच लेने के चलते उन अभ्यर्थियों के सामने अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है जिन्होंने अपना खून पसीना बहाकर भर्तियों की जांच कराने के लिए सरकार को मजबूर किया था। 1कब क्या हुआ : ’>>31 जुलाई 2017- प्रदेश सरकार ने केंद्र से की जांच की सिफारिश। ’21 नवंबर 2017-कार्मिक और पेंशन मंत्रलय ने जारी की सीबीआइ जांच की अधिसूचना। ’25 जनवरी 2018-सीबीआइ ने लखनऊ में दर्ज की पीई। ’31 जनवरी 2018 सीबीआइ ने पहली बार यूपीपीएससी में रेड की। ’पांच मई 2018-सीबीआइ ने यूपीपीएससी के विरुद्ध दर्ज की पहली एफआइआर।राब्यू, प्रयागराज : प्रदेश में सबसे बड़े भर्ती घोटाले को सीबीआइ जांच के जरिये उजागर कर बड़ा लाभ लेने की प्रदेश सरकार की मंशा खटाई में पड़ गई है। उप्र लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) से पांच साल के दौरान पीसीएस सहित विभिन्न सरकारी पदों पर हुए हजारों चयन में गड़बड़ी के सुराग लगाने के बाद सीबीआइ ने अघोषित रूप से हाथ खींच लिए हैं। इससे चयन में अनुचित लाभ पाने वाले ठाठ से नौकरी कर रहे हैं।1सीबीआइ ने 25 जनवरी को लखनऊ में पीई दर्ज कर 31 जनवरी, 2018 से यूपीपीएससी में भर्तियों की जांच शुरू कर दी थी। इससे हजारों अभ्यर्थियों को अपना छिना हुआ अधिकार वापस मिलने की उम्मीद जगी थी। सीबीआइ ने पीसीएस 2015 समेत चार बड़ी भर्तियों में गड़बड़ी के तमाम साक्ष्य जुटा लिए और तमाम चयनितों से पूछताछ के बाद पांच मई को अज्ञात लोगों के खिलाफ ‘आरएसी सी वन’, के रूप में प्राथमिकी दर्ज कर शीघ्र ही कोई बड़ा कदम उठाने की अपनी मंशा भी जाहिर कर दी। लेकिन, मई बीतते ही सीबीआइ के सभी आला अधिकारी दिल्ली मुख्यालय लौट गए। अब भर्तियों की जांच के प्रति सीबीआइ पूरी तरह से मौन है। यूपीपीएससी से परीक्षाओं संबंधी रिकॉर्ड लेकर सील किए जाने के बाद जांच पर अघोषित रूप से रोक लगी है। शीर्ष स्तर पर भी सीबीआइ के इस भर्ती घोटाले से हाथ खींच लेने के चलते उन अभ्यर्थियों के सामने अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है जिन्होंने अपना खून पसीना बहाकर भर्तियों की जांच कराने के लिए सरकार को मजबूर किया था। 1कब क्या हुआ : ’>>31 जुलाई 2017- प्रदेश सरकार ने केंद्र से की जांच की सिफारिश। ’21 नवंबर 2017-कार्मिक और पेंशन मंत्रलय ने जारी की सीबीआइ जांच की अधिसूचना। ’25 जनवरी 2018-सीबीआइ ने लखनऊ में दर्ज की पीई। ’31 जनवरी 2018 सीबीआइ ने पहली बार यूपीपीएससी में रेड की। ’पांच मई 2018-सीबीआइ ने यूपीपीएससी के विरुद्ध दर्ज की पहली एफआइआर।’>>प्रदेश सरकार की मंशा खटाई में, गलत तरह से चयनित ठाठ से कर रहे नौकरी