शबीला ने गरीब बच्चों के लिए खोली शिक्षा की 'सबील'
डॉ. शबीला ने की है संस्कृत में पीएचडी, ¨सचाई विभाग में करती हैं नौकरी, अधिकांश वेतन गरीब ब'चों को किताब-कापियां और अन्य कार्य में करती हैं खर्च...
मथुरा, जासं। गरीब बच्चों की बदहाली देख मन में टीस उठती। सोचा उनके लिए कुछ किया जाए। बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए कुछ परिवारों को आर्थिक मदद देना शुरू किया। जल्द ही समझ आ गया कि इससे कुछ नहीं होने वाला। कारण, बच्चों की बदहाली की जड़ उनका अशिक्षित होना था। इसके बाद जड़ पर ही प्रहार करने की ठानी। गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए घर में ही एक जूनियर हाईस्कूल खोला। वे इसी के माध्यम से गरीबों बच्चों को भविष्य की राह दिखा रही हैं। यह महिला हैं डॉक्टर शबीला।
डॉक्टर शबीला ने लगभग तीस वर्ष पूर्व वृंदावन दरवाजा स्थित घर में स्कूल खोला था। संस्कृत में एमए और वर्ष 1992 में वृंदावन शोध संस्थान से संस्कृत में ही पीएचडी की। स्कूल चलाने में आर्थिक दिक्कतें आईं। इस पर वर्ष 1995 में लघु ¨सचाई विभाग में नौकरी की। सरकारी नौकरी की बाध्यता के चलते उन्होंने अपने को स्कूल से अलग कर लिया। आगरा में ऐसा ही एक स्कूल खोला था, उसे भी बंद करना पड़ा। वेतन बंट जाता बच्चों में
डा. शबीला के बड़े भाई हबीब जापान में हैं। छोटे भाई हारुन, बहन मुन्नी, शब्बो और शकीला की शादी हो चुकी है। पैतृक मकान में ही शबीला स्कूल चलाती हैं। उन्होंने शादी नहीं की है। बच्चों को ड्रेस, किताब कॉपी आदि में वेतन का अधिकांश हिस्सा चला जाता है। सेवानिवृत्त होने में अभी चार साल हैं। मदद को तत्पर
डा. शबीला को अक्सर महिलाएं राशन कार्ड, वृद्धा एवं विधवा पेंशन के आवेदन पत्र दे जाती हैं। इन्हें वह कार्यालयों में पहुंचा देती हैं। कहती हैं दिल पर चोट तब पहुंचती है, जब विभागों में लिपिक उन्हें दलाल समझते हैं।