कर्मचारी के बुढ़ापे का सहारा है पेंशन
बस्ती: पेंशन सरकारी कर्मचारी के बुढ़ापे का सहारा है। वर्ष 2005 से नियुक्त कर्मचारियों की पेंशन सरकार ने बंद कर दी है। सरकार के इस एक फैसले ने लाखों कर्मचारियों का भविष्य अंधकार में कर दिया। यह कहना है विभिन्न कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों का। मंगलवार को जागरण कार्यालय में आयोजित पाठक पैनल में कर्मचारी नेताओं ने कहा कि एक जनप्रतिनिधि यदि विधायक, एमएलसी अथवा सांसद हो जाता है तो वह एक साथ तीन पेंशन प्राप्त करता है। कर्मचारी अपनी पूरी उम्र सरकारी सेवा में गुजार देता है तो भी उसके हिस्से में पेंशन नहीं आती है। पुरानी पेंशन नीति कर्मचारी के हित में थी। उसी की बहाली के लिए कर्मचारी संगठन संघर्ष कर रहे हैं।
पुरानी पेंशन बहाली मंच के रामअधार पाल ने कहा कि पहले मूल वेतन का 50 फीसद पेंशन हुआ करता था। अब पेंशन की व्यवस्था नहीं है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के मंत्री तौलू प्रसाद ने कहा कि रिटायर होने के बाद पेंशन की जरूरत सर्वाधिक होती है। चकबंदी लेखपाल संघ के जिलाध्यक्ष राजेश कुमार यादव ने कहा कि कर्मचारी पेंशन बाजार के हवाले कर दिया गया है। ग्राम विकास अधिकारी संघ के मंडल अध्यक्ष राकेश पांडेय, मंडल अध्यक्ष ट्यूबवेल टेक्निकल संघ श्याम बिहारी चौधरी, महामंत्री ग्राम विकास अधिकारी संघ अमर नाथ गौतम, ट्यूबवेल टेक्निकल संघ प्रदीप कुमार, संतोष कुमार राव, मुकेश चंद्र सोनकर ने कहा कि जीपीएफ की कटौती बंद कर दी गई है। पहले जीपीएफ के पैसे से कर्मचारी बड़े-बड़े काम कर लिया करते थे, अब यह सुविधा भी बंद हो गई। सर्वाधिक दिक्कत तो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की है। वेतन कम होने की वजह से वह न तो ठीक से परिवार की देखभाल कर पा रहे हैं और न ही बुढ़ापे के लिए कुछ रख पा रहे हैं।
Posted By: Jagran