मिर्जापुर : हिन्दी भाषी क्षेत्र के युवाओं को तराश रहे अंग्रेजी के सेवानिवृत्त शिक्षक
सतीश रघुवंशी, मीरजापुर । आज के समय में सफलता के लिए अंग्रेजी की जानकारी अनिवार्य सी हो गई है। ग्रामीण क्षेत्र के युवा पढ़-लिखकर जब मेट्रो शहरों में रोजगार की तलाश करते हैं तो उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा बन जाती है, अंग्रेजी भाषा की अच्छी जानकारी न हो पाना। इस समस्या को समझकर अंग्रेजी के सेवानिवृत्त शिक्षक, ग्रामीण युवाओं को अंग्रेजी की तालीम देकर न केवल रोजगार दिलाने में मदद कर रहे हैं बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बना रहे हैं।
विजयपुर के धौरहरा गांव निवासी रामललित शुक्ल आसपास के लोगों के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं। इंटर कालेज से सेवानिवृत्त हो चुके रामललित शिक्षा दान में अभी भी रमे हुए हैं। राम ललित ¨हदी भाषी क्षेत्र के युवाओं को अंग्रेजी पढ़ाकर उन्हें आज के वैश्विक मंच पर सफल होने का हुनर प्रदान कर रहे हैं। निश्शुल्क शिक्षा के माध्यम से वे न सिर्फ अंग्रेजी भाषा सिखाकर युवाओं को आत्मनिर्भर बना रहे हैं बल्कि गरीब परिवार के बच्चों को उस योग्य बना रहे हैं जिससे वे किसी भी मेट्रो शहर में जाकर अपनी आजीविका चला सकते हैं। वे स्पी¨कग इंग्लिश का भी अभ्यास कराते हैं जिनसे सीखकर कई युवा दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में मल्टीनेशनल कंपनियों में काम कर रहे हैं। बकौल रामललित ''जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए''। इसी आदर्श वाक्य को जीवन सूक्त बना चुके शुक्ल का कहना है कि हम कितने भी आगे क्यों न हो जाएं। यदि हमारे आसपास के लोग पीछे रह जाएंगे तो हमारे आगे होने का कोई औचित्य नहीं है। इसलिए वे सेवानिवृत्ति के बाद भी गांव के बच्चों को पढ़ाते हैं और पास के इंटर कालेज जाकर निश्शुल्क शिक्षण कार्य कर रहे हैं। फिराक गोरखपुरी से प्रभावित
रामललित शुक्ल ने बताया कि वे रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी के उस आदर्श वाक्य को मानते हैं जिसमें वे कहते हैं कि किसी को दो रोटी मत दीजिए बल्कि उसे दो रोटी के योग्य बना दीजिए। इसी को जीवन में आत्मसात करके रामललित गरीब व जरूरतमंद ग्रामीण युवाओं को अंग्रेजी का हुनर देकर उन्हें दो रोटी कमाने के योग्य बनाने के मिशन पर जुटे हुए हैं। परिवार का विरोध फिर भी डटे
सेवानिवृत्ति के बाद इंटर कालेज में जाकर और कहीं भी कक्षाएं लगाकर युवाओं को हुनरमंद बनाने की धुन में रमे रामललित शुक्ल को परिवार की असहमति भी झेलनी पड़ती है। लेकिन वे कहते हैं ''न्यायात पथ: प्रविचलन्ति पदम न धीरा:'' यानि न्याय के पथ पर चलते हुए चाहे विरोध हो या प्रशंसा, पथ पर अग्रसर रहना ही सच्चा धर्म है।